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आशा की किरण

मंजू लोढ़ा
परेल मुंबई (महाराष्ट्र)

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हो घनघोर
अंधियारी रात
या हो गहरी
अमावस की रात,
एक नन्हा सा दिया
आशा की किरण
बनकर जगमगाता है.
वह थी एक मुसलधार
बारिश की रात,
जब जेल की दीवारें,
प्रकाशमान हो उठी,
एक अद्भूत अलौकिक
बालक श्रीकृष्ण का जन्म हुआ,
आशा और विश्वास का
एक सुरज जगमगाया.
वह थी अमावस की रात
जिसमें नन्ही-नन्ही दिपमालाओं
ने पूनम की रात बना दिया,
श्री राम का आगमन
अयोध्या का घर-घर
प्रकाशमान हो गया.
वह थी अमावस की रात
जब अहिंसा, क्षमा, अभय के प्रतिक,
प्रभु महावीर का
निर्वाण कल्याणक हुआ,
ज्ञान, तप, त्याग की मूर्ति
से हमारा विछोह हुआ,
तब माटी के छोटे-छोटे दीपों ने
ज्ञान की ज्योत को जलाये रखा।
वह गौतम बुद्ध थे, जो यह संदेश दे गये,
“अप्प दीपो भवः” अपना प्रकाश खुद बनो,
चाहे कितनी भी हो गहरी घनघोर
काली अमावस की रात,
उसमें भी आशा की एक
किरण मुस्कुराती है,
जीने का नया हौसला देती है,
माना कोविड-करोना की यह
अमावस की रात कुछ लंबी हो गयी,
लेकिन हिम्मत ना हारना ए दोस्त,
हम जमकर इसका मुकाबला करेंगे,
पहले से बेहतर, चमकीले बनकर निखरेंगे।

परिचय :- मंजू लोढ़ा
निवासी : परेल मुंबई (महाराष्ट्र)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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