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रे सुन मानव

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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रस – करुण, रौद्र
विषय – कोरोना त्रासदी के कारण
भाव – जीवों पर दया विश्व का कल्याण।

रे सुन मानव! तू ही तो अपनी
निहित गति का कारक है।
कल जीवों पर था जुल्म किया
अब स्वयं स्वयं का मारक है।

यह अथक दण्ड जो भोग रहा
तू ही उसका अवतारक है।
रे सुन मानव! तू ही तो अपनी
निहित गति का कारक है।

बनने की ख़ातिर शेर,
ढेर अब गिरी जमी पर शाख तेरी।
एक अदने ना दिखने वाले ने
समझाई औकाद तेरी।

अभी तलक अपनी ग़लती को
तूने ना स्वीकार किया।
चल बता जीव को स्वाद हेतु
हनने किसने अधिकार दिया?

तू देने हरि को दोष चला,
ख़ुद में ख़ुद ही निर्दोष चला।
तब अपने दोष गिनायेगा
जब स्वयं भी मारा जाएगा?

सुन लाख चौरासी योनि में
सबको जीवन अधिकार सुलभ।
जब-जब भूलोगे यह नेकी
तब-तब भुगतोगे कष्ट अलभ।

मछली मुर्गे को छोड़ चला
चमगादड़ मूर्ख तू खाने को।
क्या ईश्वर ने तुझसे बोला
सर्पों का सूप बनाने को?

इस अनतअति में मति
तेरी कोई दवा ढूँढ़ ना पाई है।
अच्छे अच्छों की नहीं चली
प्रकृति जब कोप पे आई है।

ऐंसा तो नहीं तुझको पहले से
इसका ना अंदाजा था।
प्लेग सार्स अरु मार्स एड्स भी
जीवों पर ही साजा था।

स्वाइन- वर्ड फ्लू चेचक हैजा
आदि ने दण्ड भोगाया था।
कोरोना को अब झेल रहा
क्यों बाज नहीं तू आया था?

ये कर्म फलों की ही अवधि
जो स्वयंप्रभु ने छोड़ा कर।
उनने भी हाँथ नहीं थामा जो
सकल सृष्टि का तारक है।
रे सुन मानव तू स्वयं ही
अपनी निहित गति का कारक है।
कल चीर रहा था जीवों को
अब स्वयं स्वयं का मारक है।

खग, मृग-पशु, सरीसृप जलोचरों को
खण्ड खण्ड ज्यों काट रहा।
कभी चिड़िया तो कभी गाय भैंस
आदि आदि को छांट रहा।
खुद हाड़ मांस बना है तू
पर बोटी इनकी बाँट रहा।

तेरे ही जैसा ख़ून दर्द पीड़ा
को ये सब सहते हैं।
उस परम पिता से बड़े
निवेदित भावों से ये कहते हैं।

जो पीर हमें गंभीर मनुज
यह निर्दयी होकर देता है।
जैंसे बोटी को नोच मेरी ये
मजे बहुत ज्यों लेता है।

बस वैसा ही भगवान इसे
तुम निज कर्मों का भान तो दो।
ये कल्पित होते ही सहमे
अवसर हमको मुस्कान का दो।

तो ये अवसर उन जीव हेतु
उस परमपिता ने बख्श दिया।
मानव जाति की त्राहि का
न्यायिक दर्शन अभिव्यक्त किया।

सुन अभी बहुत कुछ बाकी है
वाकई तुझमे चालाकी है?
तो आज सुधरकर क्षमा मांग
ये धरा प्रभु की थाती है।

जो इतने पर भी ना सुधरा
जीवों पर पुनः प्रहार किया।
तो मेटेगा कुछ और अभी
जो बचा सकल वैनाश किया ।

बस वही बचेगा जो मानव
इस सृष्टि का उद्धारक है।
जो भुगत रहा उस करनी का
रे मानव! तू ही कारक है।
कल जीवों को जो हंता था
अब स्वयं स्वयं का मारक है।

परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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