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रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)

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रक्षाबंधन है आज!
कई बार
कह देते हैं लोग:
“दो और लो” का पर्व इसे!
लेकिन नहीं,
मैं नहीं मानती यह!!

आज तो “बहना” ने
अपने हृदय की अनंत शुभेच्छाएं…
उज्ज्वलतम स्नेहिल भावनाएँ…
अनंत आशीष… दिव्य प्रार्थनाएँ…
“भाई” के प्रति
रेशम की पावन डोर में पिरो कर
बांध डाली है उसकी कलाई पर !
अपने उत्कट स्नेह की अभिव्यक्ति की है उसने!!

“परीक्षा” भी लेती है वह अपने “स्नेह” की!!
जब पीहर सूना हो जाता है
बाबुल की समर्थ दुलार से…
और माँ की विकल प्रतीक्षा से…!!

भाई का भी प्रण
कुछ उपहारों के रूप में
आया है बहना के समक्ष!
उसकी हर परिस्थिति में रक्षा की…
“बरगदी छत्रछाया” देने का आश्वासन बनकर!

वह रक्षा करेगा उसकी:
तमाम विपदाओं और प्रतिकूलताओं से…
उबारेगा उसे तमाम दुर्बलताओं से…
भरेगा अकूत, अटूट विश्वास उसके मन में:
बनेगा हर सुख-दुख में
उसका संबल और सहारा!

भाई तो है हर बहन को
प्राणों से प्यारा!! प्राणों से प्यारा!!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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