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रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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मेघा बड़ी जतन से रेशम के धागे लिए ब्रश से झाड़ रही थी! उसके पास ही तरह-तरह के छोटे-छोटे रंगीन नग-स्टोन, गोंद-कैंची रखे हुए थे! लक्ष्य परेशान था कि मांँ क्या कर रही हैं? कहीं यह राखी तो नहीं बना रहीं… !?! पर उसने स्वयं ही मांँ के दोनों भाइयों को बाजार से राखी खरीदकर पोस्ट कर दिया था। तो अब भला मांँ राखी किसके लिए बना रही हैं!?! उसकी प्रश्न सूचक हैरान दृष्टि देख मेघा ने कहा… जितेंद्र के लिए राखी बना रही हूंँ। बिल्कुल विस्मित होकर लक्ष्य बोला अरे! वह तो मुझसे भी छोटा बच्चा है मांँ! फिर उसके लिए राखी आप क्यों बना रही हैं? मेघा ने कहा- हांँ, उम्र में वह मेरे बच्चों से भी छोटा है। पर जब मेरा पूरा परिवार कोरोना महामारी की चपेट में आया मौत से जूझ रहा था और बिस्तर से उठने की स्थिति में भी नहीं था तब इसी शहर में रहने के बावजूद कोई भी हमारा रिश्तेदार हमारी देखभाल करने के लिए नहीं आया। सबने फोन पर हाल- चाल लेकर अपने-अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली! तब उसी ने हम लोगों के लिए रोज सुबह-शाम खाना बनाया!! जबकि वह हमारा कोई नहीं है! सिर्फ हमारे व्यवसाय में काम करने वाला एक छोटा सा नौकर! उसने गैर होकर भी मेरी और मेरे परिवार की रक्षा की है! अपनी जान की परवाह किए बिना!! कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हुए हम लोगों से डरे बिना!!! एक भाई का फर्ज अदा किया है उसने! तो मेरी राखी पर सबसे पहला हक उसी का है! वह भी मेरे हाथों से बनी राखी पर! जिस के धागे में उसके कल्याण एवं स्वर्णिम भविष्य की अनंत दिव्य प्रार्थनाएंँ मैंने अनुस्यूत कर रखी हैं!!! उसका सर्वतोभावेन कल्याण करें प्रभु!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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