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वर्षाऋतु

मुकुल सांखला
पाली (राजस्थान)

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प्रचंड गर्मी में झुलसने के बाद
पृथ्वी को ठंडक की आवश्यकता पडने पर
सुनकर पुकार अपनी भगिनी की
और उसकी असंख्य संतान की
प्रकृति देती है आदेश
षट्ऋतु में से एक उस ऋतु को
जो है मनभावन, मनहरषावन, दिलजीत
जिसकी कृषक देखते है वर्ष पर्यन्त राह
उस वर्षा ऋतु के आने पर
धरती करती है सोलह श्रृंगार
और होता है स्वागत मिट्टी की सौंधी-सौंधी सुगंध से
नदीयों के कलरव अउर पक्षियों के नृतन-गान से
फैल जाती है हरीतिमा की चादर चऊँऔर
खेतों में सुन मधुर आवाज हल की
नाच उठता है मन मयूर हलधर का
जैसे गूँज उठी हो आंगन में शहनाई
गलियों में जाग जाता है सुनहरा बचपन
कागज की नाव में होती है स्वप्निल यात्रा
अउर प्रथम बरखा का वह आत्मीय स्नान
मंत्रमुग्ध करता वह सतरंगी इंद्रधनुष
देखना है फिर इन दृश्यों को इस बार
मन के चक्षु खोल देखे, आनंद है अपरंपार

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परिचय :- मुकुल सांखला
सम्प्रति : अध्यापक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, खिनावडी, जिला पाली
निवासी : जैतारण, जिला पाली राजस्थान


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