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बारिश की बूंदे

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रचयिता : निर्मला परिहार

महकती है मिटटी
गिरती है बूंदे, जब बारिश की
खिलती है कलियां, झूमती हैं डालियां
चहकती है चिड़िया, गाती हैं कोयल
सुगंध प्रभात बांटते हैं फूल
महकती है मिटटी, खेतो की
खेतों में हल संग, चलते बैल  जब
लहराती हैं फसल, झूमते हैं दाने
खिलते हैं मुखड़े तब, परिश्रमी कृषक के
बच्चा-बच्चा हस देता, आती है फसल जब पहली
गली-गली में जलते दीप,  होती है तब दीवाली
गिरती है बूंदे, जब बारिश की
नदी कूप उफन से जाते
ताल तलैया सब इतराते
पदम है खिलता, सूखी धरा है हरियाली
इंद्रचाप अंबर में दीखता तक
गिरती है बूंदे, जब बारिश की
ठंडी – ठंडी पवन मुस्काती
बिजली भी करवट लेती
गिरती है बूंदे, जब बारिश की !!

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.लेखिका परिचय :-  निर्मला परिहार
निवासी : पाली राजस्थान
शिक्षा : बी.एड वर्ष २ विद्यार्थी

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