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प्रेम की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा)

पुरुष के अलग-अलग भाव इस कविता के माध्यम से।

पिता जब लौटे दफ्तर से
छोड़ चिंता की पोटली
घर आंगन में आतें हैं,
जैसे ही दस्तक किया
प्रवेश द्वार को बस बट गई
वहीं से प्रेम प्रीत की पाती।१

छोड़ हाथ मा का
दौड़ कर पिता की गोद में
चढ़ गए हैं बच्चे,
प्रीत का पहला कदम
हंसी उल्लास से मन
मोहित कर देता है।२

वह जाकर सीधा बैठा
बड़ों की छत्रछाया में,
चिंतामय आवाज में
बोली आने में देर हुई
कब से देख रही थी घड़ी को।
ममता की छांव में
सारे दर्द मिट जाते हैं। ३

लो झट से आई चाय का प्याला
लिए, बैठ गए सब साथ-साथ
रंग जमा है माहौल बना है,
लगा है जैसे बरसों बाद मिले हैं।.४

यह त्रिवेणी के संगम
जैसा लगता है,
बस बार-बार इसमें
गोते लगाऊं
सारे दुख दर्द मिट जाए,
इतना पवित्र है यह संगम।५

ऐसी प्रेम की पाती मुझे बहुत भावे है २

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परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर
निवासी : इंदौर म.प्र.


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