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पुरवैया

गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर (राजस्थान)
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प्रेम नगर से चली आई पुरवैया
ये तो बता प्रियतम कैसे है
जिनके पास है दिल हमारा
सनम बिना मेरे कैसे है?

कोई संदेशा देजा पुरवैया
साजन की बगिया से आई है
उनके नाम से शर्माती अखियां
वो भी क्या मुझ बिन तड़पे है?

आंचल लहराए जब पुरवैया
रंग चुनरिया का तो बता दे
जिनकी याद में रहे जागते
उनकी शामें ढलती कैसे है?

कोई निशानी प्रेम की पुरवैया
उनकी सुगंध संग ले आना
जिनकी चाहत में खोए रहते
वो भी तलाश में क्या मेरे है?

झोका हवा का लाई पुरवैया
ये तो बता साजन की गली
की हंसी ठिठौली कैसी है
सनम याद में क्या रोते हंसते है?

परिचय :- गरिमा खंडेलवाल
निवासी : उदयपुर (राजस्थान)
संप्रति : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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