रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित
कौन रोक सकता है खुशियाँ, अग़र याद का कोषालय हो।
मन नहीं घबड़ाता है बिल्कुल,,,,दिल जब एक शिवालय हो।
जीवन सदा पुष्प सा खिलता,ख़ुश्बू सराबोर कर देती।
छोटे छोटे दांत दिखाकर,बेटी जब खुल कर हंस देती।
मन बृन्दावन,तन है मथुरा,पर प्रीति उन्हीं से कर पाता हूँ।
कहने को वो अपने हैं,पर अपनों से ही डर जाता हूँ।
रिश्तों की मंहगी मंडी में,मोल भाव कर बिकते रिश्ते।
बोली लगती है रिश्तों की,मंहगे कहीं और कहीं सस्ते।
अपनी दुनिया अपना रुतबा,सख़्त उसूल भूल ना जाना।
जहाँ मिले ना नेह प्रीति,उस घर बिजू कभी न जाना।
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
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