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गर्वोक्ति

सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.

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गर्वोक्ति है नही, कोई उचित उक्ति.

हो सके तो पा लेँ इससे शीघ्र ही मुक्ति,

इसके गर्भ मेँ छिपे हैँ, कमजोर आधार,

ढह जायेँगे कभी भी, ये होकर निराधार,

इससे ही निकलते हेँ, ऐसे अप्रिय उदगार,

सुनने वाले के दिल को करते हेँ तार तार,

इतिहास की गहराईयोँ मे हेँ अनेक प्रसँग,

गर्वोक्ति का होता है, हमेशा सिरे से मोहभँग,

समय रहते सुविचारोँ की बना लेँ, अभेध्य ढाल,

ज़ो भेद दे मन के, गर्वोक्ति के सारे मकड्जाल

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लेखक परिचय :- 
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी
निवासी :- भोपाल म.प्र.


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