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वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..?
मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..?

धीर वीर गंभीर होते हैं वहीं तो बाहुबली है,
जो रंग व ढंग बंदल दे वही तो बजरंगबली है।
अष्टसिद्धियों में कुशल अब सर्व शक्तिमान कहां..?

वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..?
मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..?

काम क्रोध लोभ अंहकार को सूर्य जैसे निगल दिया,
पवन जैसा वेग मारूत जैसे आवेग सबको बता दिया।

केसरीसुत बलशाली जैसे अब स्वाभिमान कहां…?
वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..?
मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां ..?

भावों का अंत नहीं उनके जैसे हनुमंत कहां..?
मनगढ़ंत बातें नहीं उनके जैसे पारखी संत कहां..?
दार्शनिक महावीर जैसे अब वर्धमान कहां…

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के सच्चे वो भक्त हैं ,
माता जानकी का पता लगाने में वो तो सशक्त है ।

सुग्रीव से मिलाप करायें उनके जैसे अब प्रतिमान कहां..?
वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..?
मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..?

मनन करो चिंतन करो जैसे किये थे श्री राम रघुराई,
समयानुरूप मनुज ढल जाएं *श्रवण* सबको देते बधाई ।

जिंदगी रहते बंदगी कर लें अब सम्मान यहां..
वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..?
मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..?

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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