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विरह मिलन की तैयारी

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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आज साजन मेरे द्वारे आए
मै विरह अगन की मारी रे।
बचपन ब्याह रचा दी बाबुल
अब बढ़ हुई सयानी रे
विरह मिलन की भूख है कैसी
ठीक समय पर आए बराती
डोली लाए सवारी रे
सोलह सिंगर सजा मेरी सखियाँ
गजरा बाँध संवारी रे।
कजरा नयन भरो मेरी सखियाँ
ओढ़ा दे सोना जडल चुनरिया रे।
सुसक सुसक मोरे बाबुल रोए
भइया बैठी दुआरी रे।
बाह पकड़ कर मैया रोयी
भाभी अंक भर वारी रे
अब धैर्य रखो मोरे बाबुल
बेटी जात बिरानी रे।
एक दिन रोती छोड़ सभी को
चल देती ससुराली रे।
छढे मंजिल पर एक कोठरिया
तामे एक दुआरी रे।
अहनद घहरद शहनाई
जलता दिप हजारी रे।
विरह मिलन में चली अकेली
लगी प्रीतम की छतिया रे।
निज अस्तित्व गवा मै बैठी।
विरह मिलन की तैयारी रे।

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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