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प्रेम सागर

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश
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मैं कलम से छंद-सागर पार करता हूँ।
भाव दिल के बिंब में साकार करता हूँ।।१

ओढ़ता हूँ गीत कविता,नित्य लिख लिखकर,
ताल लय पर मैं तभी अधिकार करता हूँ।।२

डूब कर मैं प्रेम सागर में बना प्रेमी,
प्रीति के सब रंग मैं स्वीकार करता हूँ।।३

प्रेम पावन प्रेम सच्चा प्रेम है ईश्वर,
प्रेम का मैं इसलिए संचार करता हूँ।।४

प्रीति के इस रंग में दुनिया रँगी मेरी,
प्रीति की तब इत्र सी बौछार करता हूँ।।५

साठ की काया मगर है बीस का जज्बा,
मन भ्रमर मैं पुष्प को नित प्यार करता हूँ।।६

प्रीति ‘जीवन’ के लिए है दाल-रोटी सी,
मैं तभी इसकी फसल तैयार करता हूँ।।७

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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