राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
भवानीमंडी (राज.)
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पुस्तक समीक्षा
कृति :- सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ
प्रकाशक :- अयन प्रकाशन , नई दिल्ली
लेखक :- हीरो वाधवानी
मूल्य :-३००/-
पृष्ठ :-१६७
समीक्षक :- राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
प्रस्तुत कृति लेखक ने अपनी माँ लीला बाई व पुत्र हैरी वाधवानी को समर्पित की है। अजमेर राजस्थान में जन्में का कार्य स्थल मनीला फिलीपींस है। आपने अभी तक अदबी आइनो, प्रेरक अर्थपूर्ण कथन और सूक्तियाँ, सकारात्मक विचार कृतियाँ लिखी है।
आज कई लेखक गीत ग़ज़ल कविताएं कहानियां लिखकर संकलन निकाल रहे है परंतु हीरो वाधवानी जी नद सूक्तियों प्रेरक प्रसंगों को छपवा कर एक बेहतरीन कृति पाठको तक पहुंचाने का कार्य किया है।
इस कृति के सम्बंध में बालकवि बैरागी, डॉ. पुष्पलता अधिवक्ता उच्च न्यायालय, कवि दादू प्रजापति, वन्दना वाणी, मीनाक्षी सिंह, उमाप्रसाद लोधी, हरि शर्मा सहित देश के ख्यातिनाम लेखकों ने ने सारगर्भित विचार लिखे हैं।
इस कृति की विशेषता यह है कि इसमें वाधवानी जी ने जीवन को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। जीवन का मर्म समझा है। ऋषियों की तरह ही आपने भी जीवन निर्माण के सूत्र इन सूक्तियों में लिखे हैं।
कृति की भाषा सरल बोधगम्य है। आपने गागर में सागर भर दिया है। व्यक्तित्व को संवारने में यह कृति सहायक सिद्ध होगी। आपने प्रेरक विचारों से क्रांति ला दी है। शब्द चयन देखते ही बनता है। आपके लेखन की शैली विशिष्ट है मौलिक है।
कृति की अर्थपूर्ण सकारात्मक सूक्तियों में वाधवानी जी लिखते है कि आज हर व्यक्ति दुखी है। दुख का कारण है इंसान की बुरी आदतें। हमें उन विजातीय गुणों का परित्याग करने की जरूरत है। बुरे विचारों के त्यागने पर ही सुख मिलता है।
जो दूसरों को बांटने में विश्वास रखते है वे महान कहलाते है जैसे सूर्य चन्द्रमा प्रकृति पेड़ ये प्राप्त निधि को अपने तक सीमित नहीं रखते बल्कि बांटते है।
चेहरे की सुंदरता भीतर से मुस्कराने व हँसने में होती है। दुख में जो दुखी नहीं होता वही ज्ञानी साहसी व समझदार होता है। मूर्ख की परिभाषा आपने दी जो श्रद्धा प्रेम सत्य करुणा को छोड़कर बैर घृणा ईर्ष्या व अहंकार को चुनता है।
आज हम ईश्वर को पाने के लिए लोगो को कठिन तप करना पड़ता है सुनते आए है लेकिन ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तपस्या की नहीं नेक बनने की आवश्यकता है। इंसान को ईमानदार बनने की सीख देती है।
व्यक्ति को चिन्ता नहीं चिंतन करना चाहिए हीरो वाधवानी जी लिखते है अत्यधिक चिन्ता और अत्यधिक निराशा अग्रिम मृत्यु है। इसलिए कभी निराश नहीं होना चाहिए। आशावादी बनो।
पर्यावरण संरक्षण के लिए लेखक ने लिखा कि संसार को सुन्दर आकर्षक व महत्वपूर्ण कैसे बना पाएंगे यदि हम पेड़ नहीं लगाएंगे। सबको पेड़ लगाने का संदेश देता है।
अमीर वह है जो स्वस्थ व सन्तुष्ट है।
सुबह ब्रह्मुहूर्त में जागने वालों का भाग्य अच्छा होता है क्योंकि सुबह जल्दी उठने से प्रार्थना व्यायाम अध्ययन और सेवा करना मिल जाता है। वह घर मन्दिर होता है जहाँ सेवाभावी सदाचारी लोग रहते हैं।
लेखक ने पुस्तकों का महत्व बताया है कि ९० प्रतिशत रोग और ९५ फीसदी अंधविश्वास तो ध्यान से पुस्तक पढ़ने मात्र से दूर हो जाते है। इसलिए सद्साहित्य पढ़ना चाहिए।
दिव्यांगों का हौंसला बढ़ाते हुए लेखक लिखता है हाथ और पाँव न होने के बाद भी जो काम करता है वह दिव्यांग नहीं वीर है।
आस्तिक और नास्तिक को परिभाषित करते हुए लेखक ने लिखा कि जो परिश्रम प्यार और सेवा करता है वह आस्तिक है, बाकी सब नास्तिक है। देश में बढ़ती हिंसा आतंकवाद फैलाने वालों के लिए वाधवानी लिखते है कि ईश्वर हमारी बहुत सी गलतियों को माफ कर देता है। लेकिन हिंसा और घृणा फैलाने वाले को नहीं माफ करता। समुद्र पृथ्वी से इसलिए बड़ा हो पाया है क्योंकि समुद्र ने नीचे वाला, नम्रता वाला रास्ता अपनाया है, इसलिए हमें बड़ा बनने के लिए समुद्रवत व्यवहार करना चाहिए। बढ़ती नशे कीे प्रवर्ति को देखते हुए लेखक सावचेत करता है कि मादक पदार्थों का स्पर्श करना मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालना है। जो व्यक्ति अकेले और बिना किसी की सहायता के जीवन में आगे बढ़ते है उन्हें ही जीवन में खुशी और आनंद मिलता है जैसे पक्षी हमेशा खुश और आनंद में रहते है क्योंकि वे अकेले और बिना किसी की सहायता के उड़ते है।
बहुत से लोग किताब पढ़ने के लिए ले तो जाते है परन्तु लौटाने का नाम नहीं लेते ऐसे लोगो के लिए लिखा है कि कोई आपको पुस्तक पढ़ने के लिए दे रहा है समझो वह आपको बड़ा धन उधार में दे रहा है। आपका कर्तव्य है कि आप उन्हें वापस लौटाए। एकता में शक्ति होती है इस कहावत को सार्थक करती पंक्तियाँ देखिए :- एक अंगुली एक किलो का वजन नहीं उठा सकती, लेकिन पांचों अंगुलियों मिलकर पचास किलो का वजन उठा लेती है।
शहीदों के लिए लेखक लिखता है कि शहिद के समान कोई दानी, साहसी और त्यागी नहीं होता है।
संक्षेप में प्रस्तुत कृति गूढ़ विचारों का आइना है जो व्यक्ति को आशावादी बनाते है और पथप्रदर्शक का कार्य करती है।
लेखक ने अपनी गद्य साहित्य की कृतियों में संस्मरण रेखाचित्र रिपोर्ताज लिखे लगभग २००० सूक्तियाँ लिखी। फिलीपींस के मन्दिरों में आपने १०० से अधिक बार प्रवचन दिए। आप अपनी कृतियाँ निशुल्क भेंट करते है लेकिन पुस्तकें खरीदकर पढ़ते है। वाधवानी जी के जीवन से सभी को शिक्षा लेना चाहिए।
आपकी यह कृति साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाये ऐसी शुभकामना देता हूँ। बधाई ….
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लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित” भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान
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