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सियासत

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)

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कहाँ गए वो दिन भारत के, सम्मान सभी का प्यारा था।
मर्यादित भाषा थी सब की, कर्तव्य हमारा नारा था।

आक्रोशित होना बुरा नहीं, अंदर के भाव नियंत्रित हों।
मृत हुई आत्मा, मन कुंठित, तुम बुरी तरह क्यों चिंतित हो?

पहले पी एम को याद करो, इन्दिरा, राजीव महान हुए।
उनके कुल के तुम वारिस हो, गुण उनके तुममें नहीं छुये।

भद्दी गाली, सतही भाषा, डंडे मारो, क्यों बोल गये।
देख भीड़ जनता की क्यों, जहर जुबाँ से घोल गये?

होकर बाशिंदे मूल रूप से, कश्मीर भुला कर रोये कब?
राम लला का केस चला …. कैसे बरसों तक सोये तब?

धारा हटी तीन सौ सत्तर, बेचैन हुए कपड़े फाड़े।
अच्छे काम सुहाये कब, हर जगह अड़ंगे ही डाले।

मनमोहन को भी तंग किया, घोषणा पत्र भी फाड़ दिया।
अब तलक हमें कुछ याद नहीं, तुमने क्या अच्छा काम किया?

अधीर आपका नेता है, वो जोर-जोर चिल्लाता है।
दो कौड़ी का है अक्ल नहीं, संसद में शोर मचाता है

पता नहीं क्या है मज़बूरी, आगे भी हाल बुरा होगा।
जिसको तुम गाली दे बैठे, सोना बहुत खरा होगा।

है गर्व सभी को पी एम पर, धिक्कार आपके भाषण पर।
नहीं सूझता बोलें क्या …….. राष्ट्रपति अभिभाषण पर।

बत्ती जलती बहुत देर से, जलते ही फ़्यूज हुआ करती।
कब सुधरोगे राहुल बाबा, मम्मी जी खूब दुआ करती।

हार जीत होती रहती, प्रतिशोध, क्रोध में जलते क्यों?
जब चिड़ियाँ चुंग गईं खेत पूरा, हाथ आप फिर मलते क्यों?

कुछ सीखो श्री सिंधिया से, शर्मा आनन्द सहायक हों।
कवि बिजू साफ़-साफ़ कहता, नाक़ाबिल असफ़ल नायक हो।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।


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