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कविता ऐसे जन्मी है

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया (असम)
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प्रदोष छंद कविता
प्रदोष छंद विधान :-
यह १३ मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है- अठकल+त्रिकल+द्विकल =१३ मात्रायें

अठकल यानी ८ में दो चौकल (४+४) या ३-३-२ हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।)
त्रिकल २१, १२, १११ हो सकता है तथा द्विकल २ या ११ हो सकता है।

मन एकाग्रित कर लिया।
चयन विषय का फिर किया।।
समिधा भावों की जली।
तब ऐसे कविता पली।।

नौ रस की धारा बहे।
अनुभव अपना सब कहे।।
लेकिन जो हिय छू रहा।
कविमन उस रस में बहा।।

सुमधुर सरगम ताल पर।
समुचित लय मन ठान कर।।
शब्द सजाये परख के।
गा-गा देखा हरख के।।

अलंकार श्रृंगार से।
काव्य तत्व की धार से।।
पा नव जीवन खिल गयी।
पूर्ण हुई कविता नयी।।

परिचय :- शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’ (विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ नवम्बर १९६९, सुजानगढ़ (राजस्थान)
निवासी : तिनसुकिया (असम)
प्रकाशित पुस्तकें : एकल ५ कविता संग्रह- “दर्पण”, “साहित्य मेध”, “मन की बात”, “काव्य शुचिता”, तथा “काव्य मेध” अन्य रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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