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उपजती है सदा कविता

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दीपक्रांति पांडेय
(रीवा मध्य प्रदेश)

रहूँ मैं भीड़ में चाहे, रहूँ हर दम हीं मैं खाली
उमड़ती है हृदय पथ पर,विचारों पूर्ण दिवाली,
मेरा हिय है अति चंचल,विचारों पूर्ण है हलचल,
खनक उठती है शब्दों की, है अर्थोपूर्ण रसवाली,

मैं अंकुर हूँ विचारों की,मेरी कविता है एक डाली,
है गुंजित स्वर तरंगों के,ज्यो कूहुके,कोयल काली,
विचारों के समंदर में,है जैसे सीप में मोती,
सदा मन में पनपते यूँ,मेरे हर भाव हैं आली,

रहूँ भीड़ में चाहे, रहूँ हरदम ही मैं खाली,
उमड़ती है हृदय पर,विचारों पूर्ण दिवाली,

मेरे मन से प्रवाहित शब्द होते हैं सदा ऐसे,
मद से भरे,मद पूर्ण,छलकती ज्यों रसिक प्याली,
भावों की जमीन ऐसी,अभावों की कमी जैसी,
उपजती है सदा कविता,ज्यों उपजी हो सजी थाली,

रहूँ मैं भीड में चाहे, रहूँ हरदम ही मैं खाली,
उमड़ती है हृदय पथ पर,विचारों पूर्ण दिवाली

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लेखिका परिचय :-  दीपक्रांति पांडेय रीवा मध्य प्रदेश


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