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पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान

अतुल भगत्या तम्बोली
सनावद (मध्य प्रदेश)

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आँखों से निकलकर झुर्रिवाले गालों से होकर टपकते हुए आँसू, कपकपाते होंठ और मन में दर्दभरे एक जलजले ने उसकी अंतरात्मा को मानो हिला कर रख दिया हो। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसने उसके पालन पोषण में कोई कमी रखी या उसने कोई गलती कर दी। पूरा एक दिन उसे अनाथ आश्रम में आए हुए हो चुका था। अपनी उम्र के सत्तर बरस पार कर चुका है वो। एक फैक्टरी में काम करने वाला एक मजदूर है रघुराम और एक पुत्र का पिता बनने पर खुशी मना रहा है। उसने अपने पुत्र को सूरज नाम दिया ये सोचकर कि वह उसका नाम रोशन करेगा। परिवारजन एवं उसके साथी उसे बधाईयाँ दे रहे है। रघुराम अपने पुत्र के लिए बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगा। दिन रात काम में लगा रहता समय बीतता चला गया सूरज ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली अब वह अब कॉलेज में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। रघुराम का सपना है कि उसका बेटा एक बड़ा इंजीनियर बने। उसने अपने बेटे को उसकी इच्छानुसार पढ़ाई की पूरी आज़ादी दी। बेटा भी आज्ञाकारी था उसने अपने पिता के सपने को हकीकत में बदलने का प्रण लिया लेकिन कहते है ना कि जैसा देश वैसा भेष। समय हर इंसान को बदल देता है। सूरज के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसने इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया वहाँ पढ़ाई के साथ साथ विसंगतियों को भी अपना बैठा, अब उसे शहर की चकाचौंध ने अपनी और आकर्षित कर लिया और बीतते समय के साथ उसी की कॉलेज में पढ़ने वाली किसी रईसजादी से प्रेम हो गया जिसे क्लब में जाना, मित्रों के साथ किटी पार्टी करना एवं घूमना फिरना पसंद था। नौकरी मिलते ही उन दोनों ने शादी कर ली। इस बात कि खबर जब माता-पिता को हुई उनके मन को धक्का सा लगा लेकिन उनके समक्ष कोई विकल्प न था। उन्होंने उस विवाह को स्वीकार कर वर-वधु को आशीर्वाद दिया। उस परिवार में लड़की अपने आप को एडजस्ट नही कर पा रही थी क्योंकि उसकी आज़ादी का यहाँ हनन होने लगा था और वह बंधनों में बंधने लगी है ऐसा अहसास करने लगी । कुछ ही समय में अपने पति को लेकर वह दूर रहने लगी। अपने बेटे से दूर होने का दर्द माँ सह ना पायी बीमार रहने लगी और कुछ ही दिनों में चल बसी। उसके पिता भी पत्नी के जाने के बाद टूट से गए उसके पिता को उसकी पत्नी ने अपने साथ रखना स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसे पश्चिमी सभ्यता ने जकड़ रखा था। छोटे कपड़े पहनना, देर तक पार्टियों में रहना यहाँ तक कि मर्यादा और सम्मान उसके शब्दकोश में थे ही नहीं। पति पर रोब जमाते हुए उसने सूरज से उसके पिता को वृद्धाश्रम भेजने को कहा। अब सूरज के पास इसके अलावा कोई चारा न था। वह उसके पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आया। ये किसी एक सूरज की बात नही है ऐसे कई सूरज है जिनके माता पिता ने अपने बच्चों के लिए कई सपने देखे होंगे लेकिन आज वही माता पिता वृद्धाश्रम में अपना अंतिम समय गुजार रहे है और उनके बेटे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते है “हैप्पी फादर्स डे”, “हैप्पी मदर्स डे” । अगर फादर्स और मदर्स डे हैप्पी होते तो वृद्धाश्रम नाम के कोई आश्रय न होते। जब फादर्स/ मदर्स ही हैप्पी नहीं है तो हैप्पी फादर्स/मदर्स डे कहकर क्या जताना चाहती है ये आजकल की औलादें। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय संस्कृति एवम् परंपरा की धज्जियाँ उड़ा कर रख दी है बावजूद उसके आज की नई पीढ़ी अपने संस्कारों, रीति रिवाजों एवं परंपराओं का निर्वहन करना पसंद नहीं करते उन्हें सिर्फ और सिर्फ पश्चिमी सभ्यता की अश्लीलता एवम् ढोंग पसंद आते है। और यही पाश्चात्य संस्कृति हमें अपनों से दूर करती जा रही है और हम ऐसी संस्कृति को अपनाने की होड़ में लगे है। हम एक दूसरे का सहारा बनने की बजाय एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं। हैप्पी कहने मात्र से वो समय हैप्पी नही हो जाएगा यदि वास्तव में उन खुशियों को बटोरना है तो हमें पुनः अपनी संस्कृति को, हमारी सभ्यता को और हमारे बुजुर्गों को सम्मान देना होगा। हमें दुनिया को दिखाना होगा पश्चिम सभ्यता को अपनाकर नही बल्कि अपने संस्कारों के साथ रहकर भी वो खुशियाँ हासिल कर सकते है जो वास्तविक होगी न कि दिखावटी।

परिचय :- अतुल भगत्या तम्बोली
निवासी : सनावद, जिला खरगोन (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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