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फुलवारियां

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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निज बगिया में छटा बिखेरती फुलवारियां
बहुत सहेजी घर उपवन की वो क्यारियां।

कोर कोर में रची-बसी थी किलकारियां
होश जोश दौड़ में देखी सबकी यारियां।

अफवाह बाजार में पनपा करती भ्रांतियां
निर्भय पथ-संचालन की नई-नई अनुभूतियां

एकाकी विवश जन की साहसपूर्ण चुनौतियां
दुर्गम दुर्लभ पथ की बड़ी अजीब बेचैनियां।

बड़े बड़े आयोजन में आसमयिक दुश्वारियां
काम रुका, ना धाम हटा, रहती हैं तैयारियां।

देखी समझी राहत ताकत की कई मजबूरियां
विस्मृत हो सहयोगी बनने, हो जाती हैं दूरियां

कर्मवान को आभास दिलाती हैं नाकामियां
ईश्वर क्षमा करें उन्हें, जिनकी नाफरमानियां।

साथ चार जनों से भी रह जाती हैं खामियां
पर अकेले दायित्व वहन की गहन हैरानियाँ।

सामान्य रिवाजों में दिखती रहें नजदीकियां
कोई समझ ना पाए रिश्तों की बारीकियां।

बालपन से चौथेपन वाली सब जिम्मेदारियां
खेल यही जीवन का जद्दोजहद की कुश्तियां

बेशक ताकत बन सकें, निज कमजोरियां
गर खामोशी में सुने कभी हम सिसकारियां।

चौथेपन के प्रहरी बनते वंशज की जवानियाँ
उम्र दराज होने पर समझा करते नादानियां।

नहीं जरूरी जो बतलायें कैसी थी परेशानियां
बस कर्तव्यों की खातिर मौकों की कुर्बानियां

नहीं सहेजने लायक छोड़ो सभी निशानियां
बड़े महान वो लोग, जब याद करें शताब्दियाँ

चश्मा, तम बिल्ली स्याह और कारगुजारियां
कुछ गूढ़ विशेष अवश्य जिनकी मेहरबानियां

कर्माधीन सत्य मार्ग की मानी हुई मनौतियां
दुर्गम राहों में कदमों की दृढ़ किवदंतियां।

शशिप्रभा व सूर्यकिरण की साक्षी हैं शक्तियां
गुरुकृपा से फलीभूत नमन विजय विभूतियां

सुख-दुख की चादर है ईश्वर की अठखेलियाँ
हर जीवन मृत्यु की होती अलग कहानियां।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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