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तस्वीरें… राजनीति की

दुर्गादत्त पाण्डेय
वाराणसी
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सियासत की, ये राहें
उलझी हुई है, एक दूसरे से
ठीक वैसे ही, जैसे
रेलों की पटरियां, एक दूसरे से
कश्मकश जैसी उलझी हो

दावे किए गए, भर-भर के
इतने बड़े-बड़े
कि विशाल महासागर
उस विशालता से
शर्मा जाये

पर, हकीकत की, ये बुनियाद
उतनी ही कमजोर है
जितनी
एक गरीब, देख ले
अपने छत का ख्वाब
आज के वक़्त में..

नवीनीकरण का नशा
इतना तेज चढ़ा
उन्हें
अपने घर, पुराने लगने लगे
पुरानी, वो तस्वीरें
इस कदर बेकार हो गए
अब उनपर
डिजिटल, तस्वीरें सजने लगे

गुलामी की बेड़ियां
जकड़ी थी, इस कदर
जैसे
लोहे को जंग, जकड़े रहता है
पर, वो गुलामी की जंजीरें
तोड़ दी गयी
आज, हुआ भारत
लेकिन, इस आजादी की आड में
विषैली, वो नफ़रतें
घोल दी गयी

आत्मनिर्भरता
बहोत चर्चा है,
आजकल इसकी
असहायों की, लाठी तोड़कर
उन्हें, आत्मनिर्भर बनाया जा रहा….
उन लाचारों, के चश्मे फोड़कर
आत्मनिर्भरता, की खूबसूरती
दिखाया जा रहा
टेलीविजन से लेकर
हर घर तक
आत्मनिर्भरता-आत्मनिर्भरता
गला फाड़कर, चिल्लाया जा रहा

रोजगार
बढ़ रहा, नित निरंतर
बस परिभाषा, अब
बदल दी गयी, रोजगार की

रोजगार अब, अपने नए अवतार
बेरोजगार में
तब्दील होता, दिख रहा
प्रगति पथ पर, अग्रसर है.
बेरोजगार
और बढ़ता, हीं जा रहा
रोजगार का नवीनतम, अवतार
बेरोजगार…

हर गरीबों को, मिल गए
अपने घर
पर, वो घर
जमीनी नींव पर
नहीं ठहरते
कुछ घर, अभी बनने को हैं
कुछ की, नींव
कुछ खास, कागजों पर
ही रहते
ऐसे, हजारों घर
बनने को, तैयार खडे हैं
इन, घरों का निर्माण
बदस्तूर जारी है!!

परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय
सम्प्रति : परास्नातक (हिंदी साहित्य ) डीएवी पीजी कॉलेज, बनारस यूनिवर्सिटी वाराणसी
निवासी : वाराणसी

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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