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जल पर कलम

अलका जैन
(इंदौर)

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प्यास बुझाने को
व्याकुल सावन की बुंदे
समंदर में जज्बा कहा
प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो
बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों
बूंदों को बदोलत
जीवन की सोगात पाई हमने
ज़मीं पर जल जीवन
लिया यार रिश्तेदारो
आस्मां के बुलावे पर जब जब
श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची
दुनिया पूकार उठी बादल बादल
याद सताने लगी यार की बुंदों को
मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे
चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को
पशू भटक रहे बुंदों की खोज में
और जब देखा बूंदों ने हाय किसान
अपने आश्को से खेत सींचने का
असफल प्रयास करते हुए रोते
छोड़ साथ आसमान का दोडी
भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे
बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी
समंदर बनो ना बनो यार दोस्तों
आपकी मर्जी या आपकी किस्मत
बुंद बनना मत बिसार देना
अपने परायो की प्यास बुझाना यार
अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी
सजनी पर साजन ने अमर प्रेम
की तब उपजी बहुतेरी जमाने में
दुनिया की हवा लग गई बुन्दो पर
सामुहिक रूप से हत्यारी बनी हाय
गांव शहर हर जगह मोत
बाटी बुंदों ने हाय बुंदों ने राम बुंदों ने
बार बार दुनिया पुकारा करी
दो बुंदे आंखों से न टपके दुआ करना
बूंदों को सहेज रखना तरकिब से
बुंदे बुंदे बारिश की बुंदे हाय बुंदे

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परिचय :- इंदौर निवासी अलका जैन की शिक्षा बी.एससी. है, शायरी के लिए आप गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हैं और मालवा रत्न अवार्ड से नवाजी गईं हैं, फर्स्ट वाल पर १००० लोगों ने आपकी रचनाओं को पसंद किया है। आकाशवाणी दूरदर्शन अखबारों मै लेख गजल कहानी गीत प्रकाशित, आप भजन सत्संग व फैशन का शोक नृत्य कला में प्रवीण हैं आपने गैस एजेंसी का संचालन किया है आप वर्तमान मै ग्रहणी हैं।


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