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पायल की झंकार

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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बार-बार करती रहती क्यों,
मेरे जहन पर वार।
पायल की झंकार तेरी ये,
पायल की झंकार।।

रिश्ता तेरा मेरा है क्या,
तू गुल अलग चमन का।
तुझे सींचता माली दूजा,
तेरे ही गुलशन का।।
तेरे पैर की ये पैजनिया,
क्यों पर मुझे बुलाए।
मेरे हृदय को भेद रही क्यों,
सोचूँ बारंबार।।
पायल की झंकार तेरी ये…..

पायल क्या कहती ना समझा,
इतना पर जाना है।
दुखी तेरी पायल है बस ये,
मैंने पहचाना है।।
मुझे करें आकर्षित इसके,
घुंघरू बजकर सारे।
मेरी आरजू इसको, चाहे,
मेरा ये दीदार।।
पायल की झंकार तेरी..,,…

क्या “अनंत” अब होगा केवल,
ऊपरवाला जानें।
ज्ञात मुझे ये खुशियों के हैं,
उसके पास खजानें।।
मिलन लिखा यदि होना ही है,
कौन उसे रोकेगा।
आज अगर पतझड़, लाएगी,
कल ये नई बहार।।
पायल की झंकार तेरी ये…..

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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