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रिश्तों की राह

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संजय वर्मा “दॄष्टि”

जिंदगी की राह कुछ ऐसी ही होती

जब बेटी का विवाह हो नजदीक
पिता की आँखे डबडबाई  रहती
मानों आसुंओं का बाँध टूट रहा हो
बचपन से पाला पोसा
वो अब घर छोड़ कर जाना होता है
ये नियम तो है ही
किंतु त्यौहार और घर का सूनापन
भर जाता आँसू
बेटी के न होने पर
परिवार का भूख उड़ जाती
बहुत कठिन रिश्ता होता है मध्यांतर का
पिता ही इस बात को समझता है
फिक्र अपनी जगह सही
मगर बिछोह उसकी नींद उडाता
ख्वाब तो रास्ता ही भूल जाते
दिल का टुकडा
उस समय
जिसकी कीमत नहीं
वो बिछड़ जाता है
ये विरहता कुछ सालों
तक ही अपना अभिनय निभाती
फिर भी बेटी तो बेटी है
पिता की याद उसे और
पिता को बिटियाँ
की फिक्र सताती
पिता के बीमार होने पर
बेटी ही संदेशा देकर हाल पूछती
फिर झूटी आवाज दोहराती
मै ठीक हूँ
तुम अपना ख्याल रखना
ये संवेदना बूढ़े होने तक चलती है
मायका मायका होता
स्वतंत्र तितली फिर से उड़ना चाहती
पिता की बगियाँ में
समय वापस उसे
निर्वहन के लिए बुलाता है
रिश्ता बेटी का ऐसा क्या
जो हर वक्त आँखों में आँसू लाता है

परिचय :- नाम :- संजय वर्मा “दॄष्टि” पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ – मई -१९६२ (उज्जैन )
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग )
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक “, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५ , अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच


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