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मां बाप

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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हकीकत को दुनिया मे पेश ना करें,
अपनो के खिलाफ कभी केस ना करें।
जीना है तो खुदके दम पर जियो यारों,
मां बाप के पैसों पर कभी ऐश ना करें।।

कमर साथ नही दे रही है अब सीढियां चढ़ने में।
उम्र निकाल दी जिसने तुम्हारी ज़िद पूरी करने में।
कुछ तो ज़िन्दगी निकल गई तुम्हारी बातें सुनने में,
अब भी सुकून नही है थोड़ा सा वक्त बचा मरने में।

कुछ ने तो अपनी दौलत भी अपनों पे वार दी।
और कुछ ने अपनी ज़िंदगी खाने में गुज़ार दी।
फर्क बहुत है आजकल की औलादों में साहब,
चंद है जिन्होंने मां बाप की ज़िंदगी संवार दी।।

शौक खत्म हो जाते है उनके,
जब आप दुनिया मे आते हो।
मगर तुम अपने शान के लिए,
उन्हें नौकर तक बताते हो।
क्या बुरे थे उस समय वो जब खूद भूखे रहते थे।
तुम्हे खिलाया खुद पेट की पीड़ा सहते रहते थे।
ये आजकल का नही बहुत ही पुराना किस्सा है।
कोई कोई पराये नही है आपका ही हिस्सा है।

अरे यही तो है जिन्होंने आपकी तकदीर लिखी।
क्या आपको अपने सामने जन्नत भी नही दिखी।

समय नही है बात करने का वो मां से कहता है।
उधर गर्लफ्रैंड से तो देखो घण्टो लगा रहता है।

क्या मिलेगा तुम्हे जो उन्हें इतना सता रहे हो।
दुनिया दिखाने वाले को क्या मूर्ख बना रहे हो।
ये ऊपर वाला ही बताएगा क्या होता है सताना।
आएगा तुम्हारा भी बुढापा भैया भूल मत जाना।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान २०२० एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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