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जनक

वैष्णो खत्री ‘वेदिका’
अधारताल, जबलपुर (म.प्र.)

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जन्म लिया जब धरा पे तुमने, जननी ने जग दिखलाया।
ऊँगली थाम नेह से तुमको, जनक ने चलना सिखाया।

वे भूखे पेट सोए होंगे, पेट तुम्हारा भरने को।
रात-रात भर जागे होंगे, सपने पूरे करने को।
देव तुल्य हैं चरणों में उनके, सचमुच स्वर्ग समाया।
ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

कड़वे शब्दों के न करना, दिल पर उनके वार कभी।
और न करना जीवन में है, उन पर अत्याचार कभी।
क्योंकि वे तो सदा चाहते, सुखी रहे उनका जाया।
ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

यदि बन श्रवण उनकी की सेवा तुम कर जाओगे।
ईश्वर की भी कृपा रहेगी, सुखमय जीवन पाओगे।
रही सदा है मात-पिता की, शुभ आशीषों की छाया।
ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

बड़े हुए तो शुभ विवाह के, बन्धन में बन्ध जाओगे।
कुछ वर्षों में तुम भी तो है, जननी-जनक कहलाओगे।
यह जीवन का चक्र युगों से, इसी तरह चलता आया।
ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

मूक पशु भी इंसानों के, काम हमेशा आते हैं ।
मरने के उपरान्त बहुत कुछ, दुनिया को दे जाते हैं।
शत्-शत् नमन करो उनको, जिसने इंसान बनाया।
ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया।

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परिचय :- वैष्णो खत्री ‘वेदिका’
जन्म दिनांक :- १९/०३/१९५८
निवासी :- अधारताल, जबलपुर (म.प्र.)


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