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एक शहीद की पत्नी का दर्द

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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ये चूड़ी ये कंगन अब भाते है नही मुझको,
जब से इस देश के लिए खोया है तुझको।

ना चैन है ना सुकून है ना नींद आती है,
अब बस तुम्हारी याद में सारी रात जाती है।
वो सजने संवरने के ख़ाब सताते नही मुझको…।
जब से इस देश के लिए खोया है तुझको।
ये चूड़ी ये कंगन…

बैवा हूँ, अबला हूँ, अकेली हूँ शहर में।
आती रहती हूँ अक्सर लोगों की नज़र में।
सोचती हूँ बच्चों को लेकर गांव चली जाऊं मैं।
मगर वहां भी कोई नही फिर कहाँ जाऊं में।
अब बच्चों के खिलौने दिलायेगा कौन?
मैं रूठ जाऊंगी तो अब मनाएगा कौन?
अब खुदको समझाने के तरीके आते नही मुझको…।
जबसे इस देश के लिए खोया है तुझको।
ये चूड़ी ये कंगन…

वो मेरे जन्मदिन पर बाहर खाने पर जाना,
वो दिवाली पर बेग भरकर पटाखे, मिठाई लाना।
वो करवाचौथ पर तुम्हारा घर जल्दी आ जाना,
खुदके बारे में न सोच बस हमे सबकुछ दिलाना।
क्यों तुम अपने पास बुलाते नही मुझको…
जबसे इस देश के लिए खोया है तुझको।
ये चूड़ी ये कंगन…

तुमसे किये वादे को भी याद करना है।
बैखोफ जीना है किसी से नही डरना है।
अपने बच्चों को शिक्षित और होशियार करना है।
अपने घर से फिर एक जवान को तैयार करना है।
तेरी देशभक्ति और बुलन्द हौसलों से आंसू आते नही मुझको…
जबसे इस देश के लिए खोया है तुझको।
ये चूड़ी ये कंगन अब भाते नही मुझको।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है। गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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