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दर्द

मित्रा शर्मा
महू – इंदौर

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तपती रेत में चलने की
आदत सी हो गई,
जिंदगी अनसुलझे
सवालों से घिर गई।

हमने भी देखे थे कभी
हसीन सपने,
भावना और जज्बातों को
समझेंगे हमारे अपने।

मगर क्या था कि कुदरत को
कुछ और ही मंजूर था,
नजारा दिखाना ही
उसका दस्तूर था।

जिंदगी मिलती है यहां
पनाह नहीं मिलती,
हर किसीको मुकम्मल
जहां नहीं मिलती।

दर्द के सैलाबों पे
आंसूओं को पीते है,
छलनी होता है दिल
नस्तरों को चुभने से
फिर भी हम जीते है।

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परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)


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