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वीराने में बहार

डॉ. चंद्रा सायता
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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                नंदिता एक श्रेष्ठ शिक्षक का पर्याय बन चुकी थी। वह संस्कृत और हिंदी पढ़ाती थी। केवल उसके विषय के छात्र ही नहीं, अपितु पूरे विद्यालय के छात्र उसे पसंद करते थे और उसका सम्मान भी करते थे। स्टाफ का भी शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा हो, जो उससे द्वेष रखता हो।
विगत अठ्ठाईस वर्षों से नंदिता शिक्षक कर्म का निर्वहन पूर्ण समर्पण से कर रही थी। उसके चेहरे पर दिन की उजाले की हुकूमत थी, तो हृदय में मिठास का अखूट सोता प्रवहित रहता था।
शायद इन्हीं विशेषताओं के फल स्वरूप उसने घर-बाहर अनगिनत लोगों को अपने व्यहवार का कायल बना लिया था। कई पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी नंदिता का नाम २६ जनवरी को महामहीम राष्ट्रपति के करकमलों से सम्मानित किये जाने वाले शिक्षकों की सूची में शामिल था।
नंदिता ने दिवाल घड़ी की ओर ताँका, साढ़े चार बज रहे थे। वह विश्राम के प्रयोजन से उठी ही थी कि कालबेल ने किसी आगन्तुक के आने की सूचना दी। दरवाजे की ओर बढ़ते हुए वह सोचने लगी, कहीं वह चैनल वाला तो नहीं, जो उसका साक्षात्कार लेने आने वाला था। दरवाजा खोलने पर उसका सोचा सच निकला।
चैनल विशेष से आए साक्षात्कर्ता ने नंदिता से कई सवाल किये, जिसके उत्तर उसने बड़ी बेवाकी के साथ दिये।
“बस मैडम। आखरी सवाल।”
“पूछो न बेटा।”
“आपको राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिलने जा रहा है। आप तो भाग्यशाली हैं ही, पर मुझे आफके बच्चों के सौभाग्य से ईर्ष्या हो रही है। मैं चाहूंगा मैम। इस समय उनमें से जो भी घर में उपस्थित हो उसे बुला लीजिए। आपके साथ उनका फोटो लेना चाहूंगा।”
युवक के बोलते रहने के बीचन जाने कब नंदिता की आँखों की कोरें सजल हो झिलमिलाने लगीं।
यह दृश्य युवक की दृष्टि से छुपा नहीं रह सका था। वह अपने अंतिम सवाल का जवाब नंदिता के स्थिर अधरों और नम नेत्रों से पा चुका था।उसने अपना सामान उठाया और नंदिता के चरण स्पर्श करके बाहर निकल गया।
नंदिता उसे कंठ अवरुद्ध होने से ‘धन्यवाद’ का शब्द भी नहीं कह सकी। आज उसके मन के वीराने में बहार आ गई थी।

परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता
शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)।
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश
लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन
प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से
सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प्रवाह द्वारा तृतीय स्थान
संप्रति : सहायक निदेशक (रा.भा.) कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम मंत्रालय, भारत सरकार।
घोषणा पत्र : यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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