रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर
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हमारी वसुंधरा
सम्मान करो,तुम वसुंधरा का।
जिसने हमको जीवन दान दिया है।
मत भूलो तुम उसके ऋण को।
सम्मान करो…..।
जल रही अंगारो से यह।
अपनी सुन्दर वसुंधरा को।
फिर से हरा बनाना है।
सम्मान करो…..।
इसी पावन वसुंधरा पर।
नानक,गौतम, राम हुए हैं।
लाखो वीर कुर्बान हुए है।
युगों,युगों के इतिहासों के।
बलिदानो को इसने देखा है।
ना जाने कितनों सपूतो को।
सम्मान करो……।
वसुन्धरा के कण-कण में।
धन-धान्य के भंडारो से
लहलहाती खेती है।
अपनी इसी वंसुधरा को।
मिलकर हमे बचाना है।
सम्मान करो…….।
दिन-प्रतिदिन सूख रही।
वसुंधरा मानव अत्याचारों से।
जाग उठो अब दुनियॉ वालो।
अब वसुंधरा के ऋण को।
वसुंधरा के कण-कण में।
पर्यावरण बचा कर।
सम्मान करो……।
परिचय :- नाम:वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा
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