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हमारी पाठशाला

शैलेष कुमार कुचया
कटनी (मध्य प्रदेश)
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स्कूल के वो दिन याद आते है
हाफ पैंट पहनकर स्कूल जाना,
सफेद शर्ट पर टाई लगाना
छोटे बड़े गुरुजी कहकर बुलाना..

लघुशंका के लिए दोस्त साथ चल देना
लंच टाइम का इन्तजार करना
राष्ट्रीय शोक की छुट्टी की खुशी
१५ अगस्त और २६ जनवरी के लड्डू..

होमवर्क न करके लाना
फिर कॉपी गुमने का बहाना,
सचमुच बहुत याद आते है
दुबारा स्कूल मुझे जाना है..

ठंड में सोते रहना
लेट होने पर पेट दर्द का बहाना,
इंग्लिश ओर मैथ का वो डर
आज के गम से बहुत कम था..

परीक्षा के पहले वाला डर
रिजल्ट का इंतजार करना,
अब सब मामूली लगता है
दुनियादारी से स्कूल जाना अच्छा लगता है..

बारिश में भीगते हुए स्कूल जाना
और आकर सर्दी हो जाना,
आज के पीड़ा से कम था
सचमुच स्कूल का टाइम मस्त था..

टूशन की वो मस्तिया
स्कूल के बाहर खट्टा-मीठा चूर्ण खाना,
आज के पिज़्ज़ा बर्गर से कही अच्छा था
दोस्तो संग पार्टी का मजा सच्चा था..

दोस्तो संग पिकनिक में जाना
आकर जो नही गए उन्हें किस्से सुनाना
आज के वर्ल्ड टूर से अच्छा था
दोस्तो संग मस्ती का पल कितना सच्चा था

क्लास में शोर मचाना
फिर मुर्गा बनने का दर्द
आज के दर्द से अच्छा था
क्योकि वो शरीर के लिए अच्छा था

बस्ता पैक करके तैयार रहना
घंटी बजने पर सबसे पहले भागना
ओर मस्ती करके घर जाना
आज भी याद आता है

सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेना
और बेसुरा गाना
ऑफिस की बेज्जती से कही अच्छा था
उससे ही तो आगे बढ़ने का हुनर आया

बातो बातो में शिक्षक हमे
क्या क्या सिखा जाता है
स्कूल में नही जिंदगी में
आगे समझ आता है!!!

परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया
मूलनिवासी : कटनी (म,प्र)
वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना)
प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है।
पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह में पदस्थ
शिक्षा : स्नातक
भाषा : हिंदी, बुंदेली
विशेष : स्वरचित रचना, विचारो हेतु विभाग उत्तरदायी नही है, इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है।
घोषणा : में यह प्रमाणित करता हूं, कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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