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ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

समसामयिक विषय पर आलेख
विदेशों की तर्ज पर भारत में भी ऑन लाइन खरीदी का दौर चल पड़ा है। विदेशों में बच्चे बड़े होकर मम्-डेड से अलग अपनी जिंदगी जीना शुरू कर देते है।कभी-कभी आपस मे कहीं मिल जाये तो दोपहर का खाना(लंच) या रात्रि भोज (डिनर)के लिए एक दूसरे को आमंत्रित करते है,हमारा पड़ोसी कौन ? हमारे रिश्तेदार कौन ये विदेशों में(अपवाद छोड़कर) नही होता। जबकि माता-पिता, भाई-बहन,काका-काकी,भैया-भाभी साथ-साथ रहकर प्रेम और अपनत्व के साथ जीवन जीते है। वहीं मेरे मामा के लड़के की लड़की की सास की भुआ की बेटी की सास की ननंद है,मेरी बेटी की ननद की ननद की भुआ की काकी की जिठानी की बड़ी बहन के बेटे का साला है ये! कितने लम्बे-चौड़े रिश्ते हम भारतीय पालते है। अरे साहब रिश्ते तो रिश्ते पड़ोसी के रिश्तेदारों से भी हम रिश्ते पाल लेते है।शहरों में पूरी कालोनी वालों को भले न पहचाने पर १०-२० घर वालों को आपस मे पहचान लेंगे। गांवों में पूरा मोहल्ला तो ठीक पूरे गांव के बारे में लोग एक दूसरे को लगभग जानते-पहचानते है। ऑनलाइन वालों को ग्रामों की अपेक्षा शहरों में ज्यादा प्रतिसाद मिला है।
हर सामान के बारे में ऑन लाइन सर्च कर खरीदी का ऑर्डर देते रहे है और पेमेंट भी अनेकों एप से कर दिया जाता है।जबकि गांवों में लोग लेनदेन /ऑनलाइन  खरीदी इक्का-दुक्का ही करते है।शहरों में ऑन लाइन कारोबार हर क्षेत्र में होने लगा है। यहां तक कि ऑन लाइन खाना भी मंगवाया जाने लगा है। एक वीडियो विगत समय देखा था उसमें कम्पनी कर्मचारी को ऑर्डर के टिफिन में से खाना खाते हुए दिखाया जा रहा था। फिर एक और कम्पनी के कर्मचारियों ने बीफ वाला खाना अपने धर्मानुसार श्रावण मास में सप्लाय करने से इनकार कर दिया था,तो ऑनलाइन का उपयोग/दुरुपयोग प्रत्येक क्षेत्र में लोग करने लगे है। कहा जा सकता है शहरों की अपेक्षा गांवों में नाममात्र की ऑनलाइन खरीदी की जाती है। इस ऑनलाइन खरीदी में कम्पनियां अच्छा खासा मुनाफा कमा रही है। कम्पनियां हमे नही पहचानती वह तो ऑर्डर और धन दो बातें जानती है। वह धन भी देश मे काम नही आ रहा। विदेशी कंपनियां इसका लाभ उठा रही है। जबकि इसके विपरीत हम अगर ऑनलाइन खरीदी का बहिष्कार करेंगे तो हमारा धन हमारे देश मे बल्कि हमारे क्षेत्र में ही रहेगा। हम हमारे गांव,जिले में ही खरीदी करेंगे तो हमारे क्षेत्र का व्यक्ति ही सम्पन्न होगा,उसका धंधा चलेगा,उससे खरीदी करने व मिलने पर हमें जानेगा-पहचानेगा ही नही बल्कि समय असमय दुकान खोलकर हमे सामान भी देगा। एक विचारणीय बिंदु हमारा धन सिर्फ हमारा ही नही बल्कि उस पर अनेकों लोगों का, काम-धंधे वालों का भी अधिकार होता है !
वो कैसे ?
एक कहानी :- बड़नगर के समीप एक जाम का बगीचा है वहां के मालिक ने देखा कि पक्षी जाम का ज्यादा नुकसान कर रहे है। फिर भी वह साल में २५-३० हजार रुपये के जाम बेच लेता था। अगले वर्ष उस बगीचे के मालिक ने पक्षियों से जाम का ज्यादा नुकसान होने की वजह से पूरे जाम के बगीचे में जाल डाल दिया। मानेंगे की उस साल वह व्यक्ति कुछ हजार रुपये के ही जाम बेच पाया।उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। फिर उसके मन मे यह बात अनायास ही कौंधी की जाम का पेड़ निःस्वार्थ रूप से फल देता है जिस पर पंछियों का भी अधिकार होता है,बच्चों का व अन्यों का भी। पर मैंने अपने स्वार्थवश गलत किया था इसलिए मुझे ईश्वर ने इस बार सबक दे दिया। अगले वर्ष उसने पूरे बाग को ईश्वर हवाले कर दिया,उसने उस वर्ष ९० हजार रुपये के फल बेचे,
बस इसी अनुसार हमारे धन पर सिर्फ हमारा अधिकार है और हम मनमर्जी से विदेशीयों के माध्यम से खरीदेंगे तो हमारे आस-पास रहने वाले विभिन्न काम धंधे वालों का क्या होगा?कोई हमारे अपने इलाके का व्यक्ति हमसे कमाएगा तो वह कुछ न कुछ कार्यक्रम भी तो करेगा,जैसे ब्याह,कोई मांगलिक आयोजन,या अन्य प्रयोजन से किया गया कार्य तो,हमारे क्षेत्र के सोनी का,किराने वाले का धंधा,शब्जी वाले का,हलवाई, मजदूरों, बर्तन,टेंट,लोडिंग वाहन या ठेले वाला, टीवी, फ्रीज़, कूलर, विद्युत सज्जा कलाकार, घोड़ी वाले का बेंड वाले आदि-आदि का धंधा चलेगा ! और हां हमे लज़ीज़ व्यंजन भी तो खाने को मिलेंगे। तो भला अब बताइये हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी ही नही मार रहे बल्कि हमारे पेट को भी अच्छे  व मधुर व्यंजनों की भी मार पड़ेगी। हम सभी एक दूसरे के सहयोगी बनकर सुख में दुःख में मदद को आतुर रहते है। अचानक कही कोई घटना घटित हो जाये तो मदद को भी सब खड़े हो जाते है । एक दूसरे के हमदर्द बन जाते है।फिर हम क्यों अपने ही लोगों के साथ बल्कि स्वयम अपने लिए अपने देश के लिए अनर्थ कर रहे है।अतः मेरा तो संकल्प है बहुत पहले जो गलती की है उसके प्रायश्चित रूप में मैं कभी भी ऑनलाइन खरीदी नही करूँगा।यही संकल्प सारे देशवासियों ने लेना चाहिए।मैने तो अपना फर्ज अदा कर दिया, सब मेरे अपने व आप ही नही अपितु हर भारतीय ने ऑनलाइन खरीदी का बहिष्कार करना चाहिए। अब आप सबको तय करना है।मैंने तो………

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान 
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८.- २ अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।


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