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गणतंत्र दिवस पर

डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)

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गणतंत्र दिवस पर सच्चाई की कविता पढ़ने आया हूँ।
उन नालायक़ के गालों पर एक थप्पड़ जड़ने आया हूँ।

जिनने मारा था, थप्पड़ उस दिन, सैनिक के गालों पर।
था शर्मसार बेज़ार देश ………. नाली के कीड़े सालों पर।

घाव हरा होना ही था, बच्चा बच्चा थर्राया था।
गद्दारों के हाथों ने, तब झंडा पाक उठाया था।

आग लगेगी मुल्क जलेगा, महबूबा फुफकारी थी
दिल्ली की गद्दी, क्रोधित हो बहुत खूब हुंकारी थी।

औलादें पढ़ें विदेशों में, दिल्ली में घर बनवा डाला।
निर्दोष बिचारे बच्चों को पत्थर का बैग थमा डाला।

अरे तुम्हारी मक्कारी ने दिल्ली को बिल्ली बना दिया।
थी नाइंसाफ़ी ज़ालिम की, हर इक़ पण्डित को भगा दिया।

है लिस्ट बड़ी संतापों की, गिन गिन कर बदला लिया नहीं।
हर पत्थर का गिन कर ज़वाब, शायद हाक़िम ने दिया नहीं।

ये तय है तेरे कर्मों का फल इक साथ मिला तो खलता है।
कश्मीर मुक्त, लद्दाख अलग, कोई घर, न वहाँ पर जलता है।

ये बड़ी सर्ज़री थी लेकिन सर्जन ने अच्छा काम किया।
आतंकी के आकाओं पर …….. नश्तर पैना चला दिया।

समझ नहीं आता मुझको, वो डॉक्टर थे पर किया नहीं।
चीर फाड़ उसने कर डाली, जिसने डिप्लोमा तक लिया नहीं।

चाय बेचने वाले ने हिम्मत की चाय पिला डाली।
दाल तुम्हारी गली नहीं, पर उसने दाल गला डाली।

आतंकी सब कमजोर हुए, चीख-चीख चिल्लाते हैं।
प्रजातंत्र है ख़तरे में ….. दुनिया को रोज़ बताते हैं।

आँख दिखाने वाले नेता, पत्थर दिल पर रख सोते हैं।
बड़ी बड़ी कोठी वाले …………. कमरे के अंदर रोते हैं।

आज तिरंगा भारत का, फहर फहर फहराया है।
थप्पड़ सैनिक ने खाये थे, अब थप्पड़ तूने खाया है।

शीश देश का ऊँचा है, ज़ालिम तुम थोड़ा डरा करो।
बिजू एक सिपाही है … मेरी कविता पर मरा करो।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।


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