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बुढापे की लाठी

रीतु देवी “प्रज्ञा”
(दरभंगा बिहार)

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शंभु जी और उनकी पत्नी बहुत खुश है। उनका बेटा संजय उनके दिए संस्कारों तले बड़ा हुआ है। परिवार में भी सबका सम्मान करता है। समाज, देश का सच्चे नागरिक की तरह सभी जरूरतमंदों की सहायता करता है। जिला अधिक्षक होते हुए भी शंभू जी की बीमारी की खबर सुनकर घर आया है।
“पापा आपकी तबियत कैसी है? आप और माँ मेरे साथ चलिए।” संजय बोला।
“मैं स्वस्थ हूँ। तुम चिन्ता मत करो। तुम अपनी ड्यूटी पर ध्यान दो। हमलोग यहाँ बिल्कुल ठीक हैं।” शंभू जी बोले।
“नहीं पापा, अब आप लोग यहाँ नहीं रहेंगे। यहाँ आप लोगों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है। आप लोग मेरे साथ रहेंगे ………..मुझे खुशी मिलेगी। “संजय बोला।
दोनों खुशी-खुशी संजय के साथ चल दिए। मन ही मन संजय को ढेरों आशीष दे रहे हैं। वह उनके अपेक्षा पर खड़ा उतरकर बुढापे की लाठी बना है।

 

परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार


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