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होती नही पुरानी कविता

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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कड़वाहट जीवन की जीकर,
आंसू बन बहती है कविता।
पीड़ाएं पी पीकर अनगिन,
जख्म बड़े सहती है कविता।।
कितने गम के सैलाबों से,
टकराती रहती है कविता।
चेतनता की वाहक बनकर,
सत्य मगर कहती है कविता।।
दंश प्यार का पाकर देखा,
मजनू बनी दीवानी कविता।
कालजयी किरदार लिए पर,
होती नहीं पुरानी कविता।।

अंतर रोता तो कविता का,
शब्द-शब्द जीभर रोता है।
अर्थों में पीड़ा बहती तो,
सैलाबी मंजर होता है।।
घनीभूत पीडाओं से ही,
कोई सुध अपनी खोता है।
क्रांति हुआ करती है तब ही,
जब कोई आंसू बोता है।।
आहत अपमानों से होकर,
बनकर तनी भवानी कविता।
कालजयी किरदार लिए पर,
होती नहीं पुरानी कविता।।

भक्तिभवन में जाकर कविता,
गंगा जल बन जाती लोगों।
पार लगाती भव सागर से,
दुःखसे मुक्ति दिलाती लोगों।।
वात्सल्य में डुबा बदन को,
सूरज बन चमकाती लोगों।
फंसे भंवर में जो-जो तम के,
उन्हें किनारे लाती लोगों।।
बेशक वाणी देती जन-जन,
को जानी पहिचानी कविता।
कालजयी किरदार लिए पर,
होती नहीं पुरानी कविता।।

“अनंत” कविता कर्म दिलों में,
बीजों का है बोना भाई।
बीज अगर अच्छाई के हैं,
कई गुना होगी अच्छाई।।
समरसता की पुलियाओं ने,
ही तो मेटी है हर खाई।
काम बदलने का समाज को,
यूँ करती लोगों कविताई।।
परिवर्तन की वाहक है ये,
सागर है, सैलानी कविता।
कालजयी किरदार लिए पर,
होती नहीं पुरानी कविता।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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