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वृद्धाश्रम नही होता

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश

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सबसे पहले माँ के श्री चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ,
उसके ही आशीषों से मैं थोड़ा बहुत जो लिख पाता हूँ।

मेरे खातिर प्रथम देव है माँ मेरी, प्रथम गुरु है माँ मेरी
नौ माह कोख में रख, मुझे दुनिया में ले आई है माँ मेरी।

धर्म ग्रंथ और वेद पुराणों ने भी माँ की महिमा गाई है,
माँ की ममता अनमोल धरोहर, माँ बच्चों की परछाई है।

माँ पर कितना लिख पाऊँ मैं माँ ने मुझे आकार दिया है
दुनिया में लेकर आई माँ सपनों से सुंदर संसार दिया है।

तपिश में याद आती माँ के आंचल के शीतल छाया की,
माँ मानवती है, माँ अरुणा है, माँ शिल्पी है इस काया की।

खुद की भी परवाह नहीं, बच्चों के लिए समर्पित होती है
ईश्वर ने भी है माना, माँ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति होती है।

दुख सभी सहकर माँ बच्चों का जीवन सुखद बनाती है
सिलबट्टे में पिस-पिस कर मानो हिना रंग दे जाती है।

सुत के मन की मनोदशा माँ सबसे पहले पढ़ जाती है,
सुत पे आने वाले संकट से माँ पहले ही लड़ जाती है।

माँ तू है तो सुखी घर आंगन, तू ही तो मेरी आधार है माँ,
माँ ममता, समता मेरे खातिर अनुपम तेरा प्यार है माँ।

दावा है मेरा,माँ के दिल जितना कुछ भी नरम नही होता,
बेटे करते माँ से, माँ जितना प्यार तो वृद्धाश्रम नही होता।

 

परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।


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