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बुढ़ापा

बुढ़ापा

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रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” 

कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी
अब मुझ में वह ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव
कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी
कभी आकर बैठा करते थे परिंदे मेरी भुजाओं पर
आज मुझे ही मुंह चिढ़ा कर चले जाते हैं
टूट कर हाँ टूट कर बिखर जाऊंगा एक दिन सूखे तिनके की तरह
लोग कहेंगे उठाओ उठाओ और ले कर चल देंगे
कुछ आगे कुछ पीछे कुछ आगे कुछ पीछे
और जला देंगे सूखी लकड़ी की तरह
सूखी लकड़ी, घी, कपूर, कंडो के साथ
और हो जाऊंगा पंचतत्व में विलीन एक दिन
कौन देता है यहां सूखे दरख्त को खाद और पानी
अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव
अब मुझ में वो ताकत कहाँ जो दे सकूं फल और छाँव l

लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप”
पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल
माता :- श्रीमती कमला पोरवाल
निवासी :- जावरा म.प्र.
जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा
शिक्षा :- एम कॉम
व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड

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