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हे कान्हा! तेरे प्रेम में

रुचिता नीमा
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हे कान्हा! तेरे प्रेम में
कुछ पूरी सी, कुछ अधूरी सी
प्रेम रंग में पूरी तरह डूबी सी

चढ़ा है तेरा रंग ऐसा
कि दूसरा कोई रंग चढ़ता ही नहीं

ऐसी रंगी तेरी प्रीत के रंग में
कि ये रंग अब उतरता ही नहीं

हर रंग तुझसे, हर रंग तुझमें
तुझसे ही है रंगीन दुनिया मेरी

महज़ एक दिन के गुलाल से नहीं,
रोज खेलूं तेरे संग मैं प्रेम की होली

होकर तेरी डूब जाऊं तेरे रंग में,
कि खतम हो फिर हर तमन्ना अधूरी

परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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