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सुख का सागर

गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश)
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बचपन में मेंने
कितनी शरारत की
मां कभी तूने मुझे
कुछ न कहकर
अनदेखा कर
बस थोड़ा सा
मुस्कराई
मां बड़ा होकर
सब भूल जायेंगे
जब जिम्मेदारी आयेगी,
समझ जायेगा
प्रेरणा बनी रही
सागर की तरह मां।

धैर्य, धीरज की
अनमौल मुरत थी मां,
स्वर्ण कमल की
आभा लिए
हर परिस्थितियों से
निपटना वह जानती थी,
दुःख सुख से कभी
न घबराती,
मौसम बदलते ही
चन्द्रकला सा
निखार आ जाता था
मां हमेशा तेरे प्यार
दुलार में कोई
कमी नही आई
तेरे चरणों में देखा
सुख का सागर मां।

कभी भेद नहीं किया
अपने व परायों में तूने मां,
अपने हाथों से तुमने
भरपूर ममता लुटाई मां,
बीती बातें जानकर
गगन मां को कभी
भूला नहीं पाया मां
सदा देखा तेरे चरणों में
स्वर्ग सा सागर मां।

परिचय :- गगन खरे क्षितिज
निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश
उम्र : ६६वर्ष
शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से
सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४
साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य प्रदेश लेखक संघ मंहू इकाई, महफ़िल ए साहित्य कोदरिया मंहू, आर्चना साहित्य संस्थान मंहू, राष्ट्रीय संखी साहित्य परिवार, छत्तीसगढ़ सखी साहित्य परिवार, म. प्र. संखी साहित्य परिवार, राष्ट्रिय हिंदी रक्षक मंच आदि समूह से समय पर जुड़े है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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