मंजिरी पुणताम्बेकर
बडौदा (गुजरात)
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वीणा शहर के नामी विद्यालय की अध्यापिका थी। उसे अपने विद्यार्थियों को शहर के वृद्धाश्रम में ले जाना था। विद्यालय की महानिर्देशिका ने उसे बच्चों को लेके जाने से पहले वृद्धाश्रम जाकर मुआयना कर आने का निर्देश दिया। वहाँ पहुँच कर वीणा वृद्धाश्रम की मैनेजर श्रीमती सुशीला जी से मिली। सुशीला जी से विद्यार्थियों को लाने की बात कर ही रही थी तभी दरवाजे पर लाल रंग की ब्रीजा में से एक स्त्री की आवाज सुनाई दी जो चौकीदार से जल्दी दरवाजा खोलने को कह रही थी। देखते ही देखते वह गाड़ी उन दोनों के सामने आ खड़ी हुई। उसमें से एक दंपत्ति और एक बूढ़ी स्त्री उतरी। वो जरूर उस लड़के की माँ थी। उन्हें देख सुशीला ने वीणा से कहा ये एक आम नजारा है यहाँ का। अपने ही अपनों को छोड़ जाते हैं। आप यहीं रुकिए में थोड़ी देर में आई। वीणा ने देखा कि लड़का हताश था। उसकी पत्नि जल्दबाजी में और वह बूढ़ी माँ चेहरे पर खालीपन लिये खड़ी थी। दोनों दंपत्ति ऑफिस की तरफ बढ़े और उनके पीछे बूढी माँ। उनसे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। अचानक चलते-चलते वे लड़खड़ाई तो वीणा ने दौड़कर उन्हें सहारा दिया और देखा कि उनके चहरे पर आँसू बहती लकीर हो रहे थे। वीणा उन्हें छोड़ बाहर आई। बाहर आकर देखा कि उनका बेटा अपने आँसू पोंछ रहा था। पीछे मुड़कर बोला माँ मुझे माफ़ करना। उस बूढ़ी माँ ने बेटे को आशीर्वाद देकर कहा कि बेटा तू सुखी रह। मेरी चिंता मत करना। खूब नाम कमाना और मुझसे मिलने वापस कभी मत आना।
वीणा सोच रही थी कि ये बेटा कितना कायर है। तभी संध्या की आवाज से वीणा की तंद्री टूटी। संध्या कह रही थी मेडम जी ये सूची आप रखिये। इनमें से आप का विद्यालय जो भी मदद करेगा हमें अच्छा लगेगा परन्तु मिठाई न लावें क्यूंकि ये लोग उसे पचा नहीं पाते। सूची लेकर जैसे ही वीणा संध्या के साथ आगे बढ़ी तभी उसने देखा कि दो दादाजी ठण्ड से ठिठुर रहे थे। पूछने पर मालूम हुआ कि दस्त उलटी से उनके स्वेटर गीले हो गए थे। उन्हें सुखाया गया था। उनके पास दूसरे स्वेटर भी नहीं थे। तभी वीणा को घर पर रखी अलमारी और बड़ा संदूक याद आया। जिसमें ऊनी कपडों को ठूस ठूस कर रखा था। हर साल उन्हें नेफथलीन की गोलियाँ डालने और दूसरे ऊनी कपड़ों को ठूसने खोला जाता था। उसी समय उसने वो सारे ऊनी कपडे जाकर लाने एवं प्रतिमाह अपने पगार से दस प्रतिशत वृद्धाश्रम को देने का संकल्प भी किया। और सिलसिला शुरू हुआ।
परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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