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रचयिता : कुमुद दुबे
श्रेया, पति शुभम के साथ कुछ दिन पहले ही सुरभी के पडौस में रहने आयी थी। सुरभी के मिलनसार स्वभाव के कारण उसे श्रेया के साथ घुलने -मिलने में समय नहीं लगा। सुरभी के पति राकेश रिटायर पुलिस ऑफिसर थे। ड्रायवर की सुविधा समाप्त होने के बाद सुरभी और राकेश घर से बाहर आना-जाना आँटो से ही करते थे। श्रेया कार चलाना जानती थी, अतःउसकी सहायता से सुरभी के भी बाहर के काम और आसान होने लगे थे।
श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा।
ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँटी जी! बहुत से काम रुके पडे हैं, क्यों न हम कल बाजार चलें? पापाजी भी अब ठीक हैं। अस्पताल के चक्कर लगाते-लगाते मै भी बोर हो गयी हूँ, मूड भी फ्रेश हो जायेगा। सुरभी के भी बाजार के बहुत से काम रुकेे हुयेे थे अतः उसने तुरंत हामी भर दी। श्रेया के पास बैठी माला दोनों की बातें सुन रही थी- श्रेया से बोली बेटी मुझे भी एक दिन मंदिर लिये चलना, मैने तुम्हारे पापाजी की अस्पताल से छुट्टी हो जाने पर गणेशजी को प्रसाद चढाने का संकल्प लिया था। श्रेया माला की बात पूरी होने सेे पहले ही सुरभी की ओर व्यंगात्मक मुस्कुराहट बिखेरते हुये बोली अरे मम्मी जी! जल्दी क्या है, पापाजी को पूरी तरह से ठीक तो हो जाने दो, फिर चलेंगे। सुरभी श्रेया के माला के प्रति व्यवहार से मन ही मन दुखी हो रही थी, पर उसने दोनों के बीच दखलंदाजी करना उचित न समझा। क्षणिक चुप्पी के पश्चात् सुरभी ने अपने घर के लिये बिदा ली। श्रेया ने दरवाजे तक छोडने की औपचारिकता के साथ ही सुरभी से कहा- आंटीजी बाजार के काम की लिस्ट याद से बना लिजियेगा। सुरभी ने हाँ तो कर दी पर वह श्रेया द्वारा माला के प्रति किये व्यवहार से मन ही मन दुखी थी। रात को भी वह सो नहीं पायी। उसे रह- रह कर माला का मायूस चेहरा याद आ रहा था। सुरभी ने बाजार जाने से पहले माला के मंदिर में प्रसाद चढाने के संकल्प को पूरा करना निश्चित किया।
दूसरे दिन बाजार के लिये निकलते समय श्रेया, सुरभी से बोली आँटी जी आपकी लिस्ट बताईये उसके अनुसार काम की प्राथमिकता तय करते हैं। सुरभी नेे चुपचाप लिस्ट श्रेया को थमा दी। श्रेया ने लिस्ट पर एक नजर डाली पहले नम्बर पर लिखे कार्य को पढकर मुस्कुरायी और एक मिनट में आयी, कह कर पुनःघर के भीतर गई। कुछ ही देर में श्रेया- माला के साथ कार की ओर चली आ रही थी।
माला और सुरभीे एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। दोनों के चहरे पर अपने-अपने संकल्प पूरे होने का सुकून साफ नजर आ रहा था।
श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा।
ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँटी जी! बहुत से काम रुके पडे हैं, क्यों न हम कल बाजार चलें? पापाजी भी अब ठीक हैं। अस्पताल के चक्कर लगाते-लगाते मै भी बोर हो गयी हूँ, मूड भी फ्रेश हो जायेगा। सुरभी के भी बाजार के बहुत से काम रुकेे हुयेे थे अतः उसने तुरंत हामी भर दी। श्रेया के पास बैठी माला दोनों की बातें सुन रही थी- श्रेया से बोली बेटी मुझे भी एक दिन मंदिर लिये चलना, मैने तुम्हारे पापाजी की अस्पताल से छुट्टी हो जाने पर गणेशजी को प्रसाद चढाने का संकल्प लिया था। श्रेया माला की बात पूरी होने सेे पहले ही सुरभी की ओर व्यंगात्मक मुस्कुराहट बिखेरते हुये बोली अरे मम्मी जी! जल्दी क्या है, पापाजी को पूरी तरह से ठीक तो हो जाने दो, फिर चलेंगे। सुरभी श्रेया के माला के प्रति व्यवहार से मन ही मन दुखी हो रही थी, पर उसने दोनों के बीच दखलंदाजी करना उचित न समझा। क्षणिक चुप्पी के पश्चात् सुरभी ने अपने घर के लिये बिदा ली। श्रेया ने दरवाजे तक छोडने की औपचारिकता के साथ ही सुरभी से कहा- आंटीजी बाजार के काम की लिस्ट याद से बना लिजियेगा। सुरभी ने हाँ तो कर दी पर वह श्रेया द्वारा माला के प्रति किये व्यवहार से मन ही मन दुखी थी। रात को भी वह सो नहीं पायी। उसे रह- रह कर माला का मायूस चेहरा याद आ रहा था। सुरभी ने बाजार जाने से पहले माला के मंदिर में प्रसाद चढाने के संकल्प को पूरा करना निश्चित किया।
दूसरे दिन बाजार के लिये निकलते समय श्रेया, सुरभी से बोली आँटी जी आपकी लिस्ट बताईये उसके अनुसार काम की प्राथमिकता तय करते हैं। सुरभी नेे चुपचाप लिस्ट श्रेया को थमा दी। श्रेया ने लिस्ट पर एक नजर डाली पहले नम्बर पर लिखे कार्य को पढकर मुस्कुरायी और एक मिनट में आयी, कह कर पुनःघर के भीतर गई। कुछ ही देर में श्रेया- माला के साथ कार की ओर चली आ रही थी।
माला और सुरभीे एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। दोनों के चहरे पर अपने-अपने संकल्प पूरे होने का सुकून साफ नजर आ रहा था।
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लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।
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