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हे धरती माता के रक्षक

ओम प्रकाश त्रिपाठी
गोरखपुर

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हे धरती माता के रक्षक
क्यों बनते हो खुद का भक्षक
दुनिया के पेटो को भरने
को खुद का पेट जलाते हो
पर शस्यश्यामला धरती के
सीने में आग लगाते हो।
जिसके खूनो को चूस-चूस
अनगिन फसलों हे धरती माता के रक्षक
क्यों बनते हो खुद का भक्षक
दुनिया के पेटो को भरने
को खुद का पेट जलाते हो
पर शस्यश्यामला धरती के
सीने में आग लगाते हो।
जिसके खूनो को चूस-चूस
अनगिन फसलों को लहकाया
जिसकी करुणा से घर आँगन
फूलों से तूने महकाया
अब उसी धरित्री माता के
आँचल को स्वयं जलाते हो।
जिन पुत्रों को पाला तुमने
उनका ही दुश्मन बन बैठे
तेरे इन जले पराली से
सांसे उनकी कैसे पैठे
हे आवश्यकता के आविष्कारक
तृण से क्यो क्यों हारे बैठे हो।

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लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर


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