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हे बुद्ध… सुबुद्ध… तू अद्भुत…

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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हे बुद्ध सुबुद्ध तू अद्भुत
मानवता से परिपूर्ण।
सूर्य चंद्र अग्नि मारुत-
सब में तू ही ज्योति पुंज।
तू निर्विकार साकार विराट-
तू विज्ञान से परिपूर्ण।
हे अखिल ब्रह्मांड के मूल रूप-
सत्य निष्ठ तू ब्रह्म निष्ट।
हे बुध सुबुद्ध तू अद्भुत-
मानवता से परिपूर्ण।
तू करुणा के साक्षात रुप-
महानिर्वाण का मूल रूप।
तू अंतस की आनंद रूप-
राजा शुद्धोधन का कुलदीप।
कपिलवस्तु के शांति दूत-
तू नीरवता के अग्ररूप।
महामाया का तू अशेष-
जंबद्विपो में द्वीप श्रेष्ठ।
सहस्त्र योजन विस्तृत-
जिसकी सीमाएं सुनिश्चित।
पूर्व सीमा पर कंग जल-
अनंतर साल वन गंभीर।
दक्षिण दिशा के कनिक जनपद-
तत्पश्चात सीमांत देश,
हे बुद्ध सुबुद्ध तू अदभुत।

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लेखक परिचय :-  नाम – ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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