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उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०५

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर म.प्र.

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एक दिन का मै… मुझे कहाँ से होगी रिश्तों की पहचान? वो तो धीरे-धीरे ही होगी। मुझे भी और आपको भी। रामाचार्य वैद्यजी कह रहे थे कि मेरा नसीब उन्हें नहीं मालूम। लेकिन रिश्ते जुड़ते है तो नसीब भी जुड़ ही जाते है न? अब ये बात मेरे जैसे एक दिन के बालक को आपको अलग से बताने की जरुरत है क्या? परन्तु फिर भी सब कहते है कि हर एक का नसीब अलग अलग होता है। यह कैसे हो सकता है। मै तो इतना ही जानता हूँ कि फिलहाल मेरी माँ के साथ मेरा नसीब जुडा हुआ है। एक दिन का मै, मेरी जन्मदात्री माँ ने तो अभी जी भर के मुझे देखा ही नहीं है। मुझे उसके आंचल की छाँव तक नहीं मिली, नाही माँ ने मुझे अपने सीने से लगाया। नाही मैंने माँ का दूध पिया है। सच तो यह है कि मेरा जन्म यह ख़ुशी की सौगात है। पर नसीब देखिये, सब माँ के स्वास्थ के कारण चिंतित है। सबकी ख़ुशी जाने कहाँ खो गयी है। किसी में भी उल्लास नहीं, उत्साह नहीं। और मेरी माँ है कि होश में आने को तैयार ही नहीं।
अब इस परिवार में किस बात की तैयारियाँ चल रही है अंदाज लगाना थोडा मुश्किल ही है। दत्तजयंती का पारायण भी आज ही है। पुरखों के समय का रामजी का मंदिर भी है। मंदिर में ढेर सारे अनेक देवी देवता भी विराजमान है, उन सब की पूजा रोज नित्य नियम से ठीक से होना ही चाहिए। ऊपर से छुआछूत का भी साम्राज्य है। कुलधर्म, कुलाचार, देवी देवता, पूजा-अर्चना , आरती, नैवेद्य सब व्यवस्थित हो इसलिए, इन सब की ओर सबका ध्यान रहता ही है। घर की औरतों को, भगवान् के नैवेद्य के लिए रसोई भी नहा धोकर, रेशमी वस्त्रों में बनानी होती है। जब तक वें रसोई बना रही होती है, कोई भी बिना रेशमी वस्त्रों के रसोईघर में प्रवेश नहीं कर सकता। नाही औरते किसी को छू सकती है। कुएं से पानी तक औरतों को रेशमी कपडे पहन कर भरना पड़ता है। इतने कड़े नियम और इससे कड़ा धर्म और उससे भारी रीती परम्पराएं। यह भी इस घर की एक पह्चान समझिए।
ऐसे में ही, मेरे जन्म के कारण इस घर में आयी हुई वृद्धी। मतलब वृद्धी काल में इस घर के लिए भगवान् की पूजा अर्चना करना और कोई शुभ या पवित्र कार्य करना वर्जित। संकट में और संकट यह कि मेरे नाना जो कल रात से दुर्गादाई को बुलाने के लिए घर से निकले थे उनका अभी तक पता नहीं था। लडका होने की खबर सब को देनी थी। इस पर चिंता की बात यह कि मेरी माँ की नाजुक हालत सुधर नहीं रही थी। इन सब विपदाओं के कारण मेरे परनाना पंतजी निश्चित ही परेशान हो रहे होंगे। सिवाय रोजमर्रा के काम थे ही। कितना बखेड़ा, कितनी चिकचिक, कितनी समस्याओं से पंतजी दो चार हो रहे थे। झुंझलाहट और चिडचिडाहट होगी नहीं तो क्या होगा? ऐसे में पंतजी का स्वभाव भारी गुस्सैल। पर झुंझलाहट, चिडचिडाहट, और गुस्सा करने से क्या होगा? और फिर किसके ऊपर गुस्सा निकालेंगे? इसलिए पंतजी शांत थे। राम मंदिर में भगवान की पूजा अर्चना और भोग लगाने का काम उन्होंने खोले नामके किरायएदार को सौप दिया। नेने भाभी को भगवान् के भोग हेतु रसोई का काम दिया। नेने भाभी के पति को उज्जैन, मेरे पिताजी को तार देने हेतु तारघर भेज दिया। किसी एक को छत्रीबाजार में हमारे घर, मेरे जन्म की खबर देने हेतु भेज दिया। कर्फ्यू में सुबह आठ से रात के आठ तक ही छुट मिली थी अत: सभी काम जल्दी जल्दी में निपटाने थे। घर की औरतें भी अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त हो गयी ।
अब इस कमरें में मेरी नानी और रमाकाकी दोनों ही आकर बैठी थी। अभी भी नानाजी का पता नहीं था, इसलिए नानी बेचैन थी और उसका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। ऐसे ही में लाडली बिटिया की ऐसी हालत और इसी हालत में उसकी प्रसूति। मेरी माँ के खराब स्वास्थ के चलते मेरे जन्म ने भी उसे विचलित कर दिया था। नानी अब भी बहुत घबराई हुई थी। पर कहती किसे? घर की सारी व्यवस्था पर माई का नियंत्रण था। सारी चाबियाँ माई के पास। कहने को नानी सात बच्चों की माँ थी पर जरुरत की हर छोटी से छोटी चीज माई से मांगना पड़ती थी। खुद सास होकर भी माई की मर्जी सम्हालनी पड़ती थी। इन सब परिस्थियों के कारण नानी ने अपने आप को अपने तक ही सिमित कर लिया था। सब सोच सोच कर नानी की आँखों से आंसू बह रहे थे।
‘आवडे, तू क्यों रो रही है….?’ काकी ने पूछा।
‘माँ, रोऊ नहीं तो क्या करू मै?’ नानी बोली, ‘दाई को बुलाने गए इनका कल शाम से अभी तक पता नहीं है। इधर अक्का की यह हालत। रामाचार्य वैद्यजी ने भी जवाब दे दिया। अक्का के साथ कुछ अनहोनी हो गयी तो इस एक दिन के बच्चे की नए से चिंता। दोनों घरों की हालत तुमसे छिपी नहीं है। कौन सम्हालेगा इसे? यहीं सोच सोच कर मेरी बेचैनी बढती जा रही है। क्या किया जा सकता है?’ ‘हम कौन होते है कुछ करने वाले और सम्हालने वाले? वो रामजी बैठे हैं ना ऊपर। वही सब की चिंता करेंगे और वहीँ सब को सम्हालेंगे। तू चिंता मत कर और पहले रोना बंद कर। सब ठीक होगा। ‘काकी ने अपनी पुत्री को दिलासा दिया।
रमाकाकी ने इतना कहां जरुर, पर उन्हें भी चिंता सता ही रही थी।
इतने में बाहर से नानाजी के वापस आने के बारे में हल्ला सुनाई दिया। नानी तुरंत कमरे से बाहर जाने को हुई लेकिन उसके कदम दरवाजे पर ही थम गए। बाहर आंगन में पंतजी नानाजी से रात भर बाहर रहने का कारण पूछ रहे थे। पंतजी बहुत गुस्से में थे और नानाजी गर्दन नीची किये हाथ बांधे चुपचाप सब सुन रहें थे। घर के और बाड़े के सब किरायेदार दरवाजे और खिडकियों में से झांकते हुए बाप बेटे की ओर देख रहे थे। किसी की भी सामने आने या बीच बचाव करने की हिमंत नहीं थी। गुस्से में पंतजी नानाजी को मन में आए वो कह रहे थे। नालायक, कामचोर, गैर जिमेदार, आलसी, बेपरवाह, डरपोक इन शब्दों से अपने पुत्र को विभूषित कर रहें थे। गुस्से में पंतजी आपा खो बैठते थे। किसी को भी उसका पक्ष रखने या उसकी बातें सुनने का कोई मौका नहीं देते थे।
नानाजी बिना कुछ कहे, बिना कोई बहस किये शांति से सब सुन रहें थे और सब सहन कर रहे थे। थोड़ी देर के तमाशे के बाद पंतजी थक गए और गुस्से में बाहर निकल गए। पंतजी के बाहर निकलते ही नानाजी सामान्य हो गए और उन्होंने गर्दन उठाकर हमारे कमरे की ओर देखा। नानी ने तुरंत उनकों कमरे के अन्दर आने के लिए इशारा किया। नानाजी अन्दर आए और पीछे-पीछे माई भी आगयी।
‘अरे सोन्या, कहाँ थे रात भर? माई ने पूछा। नानाजी खामोश ही थे। कुछ भी नहीं बोले। माई समझ गयी, नानाजी को शायद थोडा समय चाहिए था उबरने के लिए।
‘बिना वजह डांट खानी पड़ी ना? तुम्हें तो मालूम ही है इनका स्वभाव। किसी की नहीं सुनते। गुस्से में सामनेवाले का विचार ही नहीं करते। ना ही उसको बोलने का मौका देते है और नाही उसकी परिस्थिति का ख्याल रखते है। तुम उनकी बात का बुरा मत मानों। तुम्हें क्या अलग से बताने की जरुरत थोड़े ही है। है ना? अच्छा छोडो, यह बताओं कहाँ रहे रात भर? ‘ माई ने नानाजी को शांत किया।
‘धीरज रखों माई सब बताता हूँ। ‘नानाजी बोले’ पहले यह बताओं अक्का की तबियत अब कैसी है….. ?’
नानाजी को नानी ने बीच में ही रोक दिया। बोली, ‘अजी कल रात को अक्का ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया है। माई, माँ ने और नेने भाभी ने सब सम्हाल लिया। परन्तु अक्का की तबियत बहुत नाजुक है। जब से बच्चे का जन्म हुआ है तभी से मूर्छित जैसी अबस्था में है। तेज बुखार भी है। एक शब्द भी मुंह से नहीं बोल पा रही है।’
क्या?’ नानाजी को चिंता हुई। फिर वो माँ की ओर मुड़े। माँ किसी सजीव मूर्ति सी शांत लेटी हुई थी। फिर नानाजी ने मुझे देखा। थोड़ी देर कुछ सोचते हुए सिर्फ मुझे ही देखते रहे।
‘दवाई की मात्रा लागू नही हो पा रही है। नानी बोली, ‘संध्या समय वैद्य जी फिर से आने का बोल कर गए है। हालत नाजुक है ऐसा कह रहे थे। पर आप कहाँ थे रात भर?’ नानी ने नानाजी से थोडा गुस्से से पूछा। पर नानाजी ने उनकों जवाब नहीं दिया वें माई की ओर मुड गए, ‘माई आपको बताता हूँ …. ‘ नानाजी कहने लगे। अब तक घर की सब औरतें और कुछ किरायेदार भी जमा हो गए थे। अन्दर जगह नहीं थी इसलिए कुछ दरवाजे पर तो कुछ खिड़की के बाहर से अन्दर क्या हो रहा है इसकी उत्सकुता लिए खड़े थे। सभी ये जानना चाहते थे की नानाजी रात भर कहाँ थे?
‘हाँ तो माई मै बता रहा था कल रात मै दुर्गादाई को बुलाने निकला था। गली के बाहर आया तो वहां सड़क पर चारों और पुलिस की गश्त थी। मुझे कोई सड़क पर आने ही नहीं दे रहा था और दुर्गादाई के घर जाने के लिए सडक पार करना जरुरी था। मैंने उन्हें सब हालत बताई। हाथ जोड़े, कई बार विनंती की पर कोई भी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था। इतने में पुलिस का कोई बड़ा अफसर उधर से निकला। बहस होते देख वों वहां ठहर गया। उस अंग्रेज पुलिस अधिकारी ने भी मेरी कुछ नहीं सुनी, उलटे मुझे गिरफ्तार करने का कह वह वहां से रवाना हो गया। ‘पंतजी के सामने हाथ बांधे, गर्दन नीची किए ख़ामोशी से सब सुनने वाले नानाजी अब खुल कर बोल रहे थेI
‘हे भगवान ! फिर क्या हुआ? ‘माई ने पूछा।
‘फिर क्या? मुझे गिरफ्तार कर पुलिस ने जनकगंज पुलिस थाने में रात भर बिठाए रखा। सुबह ठीक आठ बजे वहीँ अंग्रेज पुलिस अधिकारी थाने में आया और मुझे छोड़ने के आदेश दिए। मुझसे बोला, ‘मुझे क्षमा कीजिए। आपकी सुरक्षा की खातिर मुझे आपकी गिरफ्तारी के आदेश देना पड़े थे क्यों कि आप कुछ भी सुनने की मन:स्थिति में नहीं थे और ऐसे में कुछ अनहोनी भी हो सकती थी। अब आप घर जा सकते है। माई अब बाकी सब मै आराम से बताऊंगा। सबसे पहले मै रामाचार्य वैद्यजी से मिलकर आता हूँ। उन्हें दवाई बदलने के बारे में कह कर देखता हूँ। हो सकता है कुछ असर हो और फर्क पड़ जाए। जरुरत होने पर किसी और या शास्त्री वैद्य जी की सलाह लेने के लिए भी कह कर देखता हूं।’
‘अब फिलहाल कहीं जाने की जरुरत नहीं है। घर पर ही रहो। रामाचार्य वैद्यजी संध्या समय खुद ही आने का बोल कर गए है। उनसे तभी सब पूछ लेना। ‘माई बोली।
‘ठीक है।’ इतना कहकर नानाजी कमरे से बाहर चले गए। अब सब जमावड़ा भी खत्म हो गया। सभी अपने अपने काम से लग गए। अब कमरे में मै, माँ और काकी ही थे।
माँ की तबियत में थोडा भी सुधार नहीं था। अब माँ की तबियत देखनेवालों का आना शुरू हो गया था। हर आने वाला जाते जाते एक नजर मेरे पर डाल कर चला जात था। मै नींद में, या लेटा हुआ ही रहता था। माँ की तबियत और मुझे देख कर हर एक के मन में कई सवाल आते होंगे। दोपहर के लगभग दो बजे छत्रीबाजार से विष्णुपंत और उनकी पत्नी राधाबाई जच्चा बच्चा को देखने आए। अब इन दोनों का परिचय भी आपको देना जरुरी है। विष्णुपंत अर्थात मेरे दादाजी। मेरे पिताजी के पिता और राधाबाई मेरी दादी। मेरे पिता की माँ। विष्णुपंत ये सखारामपंत के बालसखा। बिलकुल दांतकटी रोटी और ख़ास मैत्री। हर बात में एक दुसरे की सलाह से काम करने वाले। विष्णुपंत बाहर सखारामपंत के साथ बैठक में ही बैठे और राधाबाई अंदर कमरे में आ गयी। मेरी दादी के साथ माई और नानी भी अन्दर आयी। दादी बहुत देर तक अपनी बहू यानि मेरी माँ को निहारती रही। काकी ने मुझे उठाकर दादी की गोद में दिया। दादी ने मेरी ओर एक नजर डाली और तुरंत ही मुझे काकी को सौप दिया।
माँ के खराब स्वास्थ और अन्य गड़बड़ियों के कारण अभी तक जो विषय नहीं निकला था वो अब सामने आया। दादी माई से बोली, ‘बिलकुल पंढरी जैसा ही दिखता है।’ अब ये विशेषण किसके लिए समझा जाना चाहिए यह प्रश्न हमेशा ही अनुत्तरित रहता है। पर माई कहाँ पीछे रहने वाली थी, ‘अजी कहाँ … नाक बिलकुल हमारी अक्का जैसा है।’
नानी ने यह चर्चा आगे नहीं बढ़ने दी। एक तरफ उसकी सास तो दूसरी ओर बेटी की सास। वो दादी से बोली, ‘वैद्यजी आकर गए। कह रहे थे औषध की मात्रा लागू नहीं हो रही। संध्या समय फिर से आने का कह कर गए है।’ नानी दादी के सामने रामाचार्य का नाम नहीं लेती।
दादी ने एक बार फिर से मेरी माँ की ओर देखा और नानी से बोली, ‘बहू की जचकी बिना दाई के हो गयी। पहले खबर होती तो हम करते कुछ व्यवस्था।’
दादी का इशारा किस ओर है यह नानी की समझ में आ गया। पर वो खामोश ही रही। थोड़ी देर ठहरकर दादी वापस छत्रीबाजार लौट गयी। माई भी उनके साथ कमरे से बाहर गयी। इन दोनों के जाने के बाद नानी काकी से बोली, ‘देखा मां, अक्का की सास कैसे ताना मार गयी। ये क्या कहना हुआ?’
‘क्या हुआ? काकी ने पूछा।
अब देखो, रीति के अनुसार अक्का की दूसरी जचकी तो उसके ससुराल में ही होनी चाहिए थी ना? पहली तो हमने ही की थी ना? पर यहाँ तो कुछ भी कहने की इजाजत ही नहीं है। हमेशा मुंह बंद रखना है। और मुझे बताओं खुद की बेटी क्या किसी को बोझा होती है? पर अक्का की ससुरालवालों को ताने मारने की ही आदत है। हमेशा टेढ़ा बोलना। और घमंड तो जैसे सबके खून में ही है। हमारे यहाँ की हालत क्या किसी से छुपी हुई है? उन्हें भी तो कुछ समझना चाहिए ना?
‘बेकार चिडचिडा रही है तू। ‘काकी बोली, ‘हो गया ना सब? अब क्या बचा है? यह सब सुनकर अक्का को कितना बुरा लगेगा? अब शांत हो जा। ‘थोड़ी देर रुक कर नानी कमरे के बाहर गयी।
कुछ देर बाद ही माँ ने अपनी आंखें खोली। बड़ी धीमी आवाज में उसके मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘पानी।’
काकी ने तुरंत थोडा थोडा कर चार चम्मच औषधि पानी माँ के मुंह में डाला।
‘यह पानी नहीं, मुझे सादा पानी दो।’ माँ ने कहाँI
‘आज नहीं कल से उबला पानी मिलेगा।’ कहते हुए काकी ने और चार चम्मच औषधि पानी माँ के मुह में डाला।
‘काकी मेरा बच्चा।’ पानी पीने के बाद माँ के मुंह से तीन ही शब्द निकले।
हाँ ‘काकी बोली, ‘बहुत ही सुन्दर स्वस्थ बेटा हुआ है।’ काकी ने मुझे उठाया और माँ के पास लेटा दिया, ‘देख ये हे तेरा बेटा। सुन्दर बिलकुल तेरे जैसा। ठहर मै माई को ओर आवडे को बुलाकर लाती हूं। ‘काकी ने दरवाजे से ही दोनों को आवाज दी। दोनों तुरंत अन्दर आ गयी।
‘क्या हुआ? ‘माई ने आते ही पूछा।
‘अक्का को होश आगया।’ रमाकाकी हँसते हुए बोली।
माई और नानी दोनों माँ के पास आयी। नानी को देखते ही माँ को रोना आगया। नानी ने माँ के बालों को सहलाया, फिर माथे पर हाथ रख कर बोली, ‘अक्का, अरी पगली रोती क्यों है? अब तो सब कुछ ठीक हो गया है।
माई ने भी अक्का का हाथ अपने हाथ में लिया, ‘अक्का, अरी मत रो। पता है क्या हम सब को कितना घबरा दिया तूने? तुम्हें क्या बताऊ, वो दुर्गादाई तो आयी ही नहीं है अभी तक। और सोन्या, जो उसको बुलाने कल शाम को घर से निकला वह अभी सुबह ही लौटा है ….’
‘माई, रहने दो नाI’ रमाकाकी ने बीच में ही अपनी समधन को टोका, ‘बाद में उसे सब पता पड़ ही जायेगा।’
माई कुछ भी नहीं बोली।
‘माँ, इनको उज्जैन खबर की क्या? ‘माँ ने धीमी आवाज में नानी से पूछा। माँ को बोलने में तकलीफ हो रही थी।
‘कर दी है सब को खबर समझी। तू मत ध्यान दें। तेरे सास ससुर अभी हाल में आकर तुझे देख कर गए है। ‘नानी बोली, ‘पहले अब तू कुछ खा ले। थोडा सा हरीरा ले ले, या सिके हुए नमक घी मिले थोड़े से मकाने ले ले। इससे तुझे थोडा ठीक लगेगा। थोड़ी देर बाद वैद्यजी आएंगे। वो जैसा कहेंगे तेरे लिए बना देंगे। तू सिर्फ शांत पड़ी रहे। और हां ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं।’ नानी ने माँ से कहाँ।
मेरी माँ अपनी माँ से बोली,’… माँ मुझे उठते… नहीं… बन रहा… जी घबरा…रहा…है ……बहुत…डर… लग… रहा… है। यें निकले… होंगे क्या…उज्जैन… से ? मुझे उनकों देखना है…उन्हें बहुत कुछ बताना है। मेरे दोनों बच्चों का क्या होगा माँ?’
बहुत कठिनाई से टुकड़े टुकड़े में माँ ने इतना ही कहाँ। माँ की अस्वस्थता बढती जा रही थी। लेटे-लेटे ही उसने थोडी करवट बदलने का प्रयास किया, पर नहीं बदल पायी करवट। फिर रुआंसी हो गयी, ‘क्या करु माँ मै …आंखे भर कर अपने लाडले को देख भी नहीं पा रही हूँ।’
माँ को क्या हो रहा है ये किसी को समझ में नहीं आ रहा था। और माँ ये किसी को समझा भी नहीं पा रहीं थी।
माई फुर्ती से सखारामपंत को माँ के स्वास्थ के बारे खबर करने कमरे से बाह गयी।
माई के बाहर जाते ही नानी माँ से बोली, ‘मैं दिखाती हूँ तुझे तेरे लाडले को’ नानी ने मुझे दोनों हाथों से उठाया ही था कि इतने में रामाचार्य वैद्यजी के बाड़े में आने की खबर आयी। सखारामपंत और रामाचार्य वैद्यजी के अंदर आने की आहट से सभी औरतें बाहर चली गयी। काकी ने मुझे हलके हाथों से उठाया और एक तरफ खड़ी हो गयी। रामाचार्य वैद्यजी माँ को देख ही रहे थे कि अचानक माँ फिर मुर्छित हो गयी। वैसे माँ की सेहत के बारे में रामाचार्य वैद्यजी सुबह ही सखारामपंत को अंदाजा दे चुके थे।
‘पंत ये तो फिर से मुर्छित हो गयी। ‘रामाचार्य वैद्यजी बोले।
‘हे भगवान ! अब क्या करे?’ पंतजी ने पूछा।
‘पंत, अब फिर से कर्फ्यू लगने का समय हो चला है। मुझे जल्द ही घर पहुचना होगा। कल सुबह मैं शास्त्री वैद्यजी को भी लेकर आता हूँ साथ में। उनकी सलाह भी ले लेंगे। परन्तु एक बात है, आप सभी धीरज रखियें। सब को सम्हालिए। रात भारी हो सकती है। मरीज का और बच्चे का दोनों का ही ख़याल रखे। कोई भी लापरवाही न होने दें। दवाई देते रहे। ‘इतना कहकर रामाचार्य वैद्यजी निकल गए।
सखारामपंत और रामाचार्य वैद्यजी के बाहर जाते ही माई और नानी दोनों कमरे में आगयी।
‘क्या कहा रामाचार्य वैद्यजी ने?’ माई ने काकी से पूछा।
काकी ने मुझे एक तरफ लेटाया फिर बोली, ‘मैंने सुबह दोनों की बातचीत सुनी है।’
‘क्या कह रहे थे वैद्यजी?’ नानी ने पूछा।
‘अक्का की तबियत में कोई सुधार नहीं है। अब कल वे शास्त्री वैद्य जी को साथ लेकर आने वाले है। देखे क्या कहते है शास्त्री वैद्यजी।’
‘हे भगवान!’ माई के मुंह से निकला। नानी रोने लगी।
‘आवडे, सम्हाल खुद को’ काकी बोली।
‘कैसे सम्हालूं माँ खुद को। ‘नानी के आंसू थम नहीं रहे थे, ‘अक्का के नसीब में दो पल सुख के नहीं लिखे रामजी ने। इतना कुछ कम था तो अब इसके दो बच्चों का क्या होगा ये रामजी को ही पता? हम किसे किसे पूरे पड़ सकते है?’
‘शांत हो जा आवडे। ‘रमाकाकी ने कहाँ, ‘पंतजी ने इस बच्चे को मुझे सौपा है। माई के सामने आज मै तुझे वचन देती हूँ कि अक्का का अगर कुछ कम ज्यादा हुआ तो अक्का के बाद इस बच्चे को मै सम्हालूंगी। चिंता करने की आवश्यकता नहीं।’
‘काकी, हम लोग अब कितने दिन के मेहमान ये हमें खुद नहीं पता। और अगर ऐसी ही कोई स्थिति हुई तो दामादजी है ना? ले जायेंगे अपने साथ। करेंगे कोई व्यवस्था। आखिर बड़े की देखभाल तो कर ही रहे है। छोटे के लिए भी कोई व्यवस्था करेंगे। इस बुढ़ापे में आप को बीच में आने की जरुरत नहीं। अब आपसे कुछ नहीं सम्हल सकता। भावुकता में बहने की जरुरत नहीं है। ‘माई ने काकी को समझाया।
‘माई, ऐसी बात नहीं है। ‘काकी बोली, ‘दामादजी अगर इस नन्हे को ले जाते है तो ठीक ही है। परन्तु कुल मिलाकर उनकी भी परिस्थिति कुछ ठीक नहीं है। आपको तो सब पता ही है। फिर भी, अपनी बेटी के ससुराल में आश्रय लेने का पाप तो मै कर ही रही हूँ। और इसे पाप का प्रायश्चित ही समझें, मैंने इस बच्चे का लालन पालन करने का निर्णय लिया है। जब तक इस तन में प्राण है, और जब तक मुझसे बन सकेगा मै इसे सम्हालूंगी। बेटी के ससुरालवालों के उपकार के बदले मुझे कुछ तो करने दें?’ नानी और माई ने इस पर कुछ भी नहीं कहां।

शेष पढियें धारावाहिक उपन्यास ‘मैं था मैं नहीं था’ के भाग – ०६ में

 


परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र.
इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता। 


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