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आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…

ज्योति जैन
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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                        यूं तो मैं आम दिनों में भी अपनी पसंद के सारे काम कर लेती हूँ पर फिलहाल लॉकडाऊन में चूंकि बाहर नहीं जाना होता, सो और अतिरिक्त कार्य भी हो जाते हैं, जिनमें बागवानी भी शामिल है। इन दिनों माली भैया नहीं आ रहे सो पुराने सीज़नल पौधों के सूखते चले गमलों में नये रोपे लगाने बैठी थी। मुझे ध्यान आया कि पिछले दिनों चौकोर गमला माली ने एक ओर रख दिया था, ये कहकर कि उसकी वॉटर लिली सूखकर खत्म हो चुकी है। वो मेरा पसंदीदा पौधा है। वॉटर लिली ज़रा से में फैलकर अपने छोटे-छोटे गोल पत्तों से गमले की सुन्दरता और बढ़ा देती है। मैंने सबसे पहले वही गमला हाथ में लिया। वॉटर लिली सूख चुकी थी।
पर ये क्या…! एक बिल्कुल नन्ही सी, गोल पत्ती उस सूखी मिट्टी से झांक रही थी। मैंने फौरन उसमें पानी डाला। पिछले दस दिन से उसमें पानी बराबर दे रही हूँ और आज… उसमें सात पत्तियाँ निकल आई हैं… और भी बिलकुल बूंद जैसी पत्तियाँ मिट्टी को चीर बाहर आने को उद्दत है। जीजिविषा का एक श्रेष्ठ नमूना…।
वर्तमान हालातों के मद्देनज़र ध्यान आया कि हम ये न सोचे कि ये आखरी पत्ता है बल्कि ये सोचें कि ये वो शुरुआती पत्ता है जो समय के साथ पूरा गमला हरियाली से भर देगा। यही तो जीवन है। हम घर में तमाम सुख सुविधाओं के बाद भी छटपटा रहे हैं… बीमारी का डर कहीं न कहीं इस पत्ते को आखरी पत्ता समझ लेने पर मजबूर कर रहा है। लेकिन अपनी ओर से अपने अच्छे कर्म करते रहें… यथा संभव औरों की मदद करते रहें… तो नैराश्य के काले बादल छटकर उम्मीदों की किरण अवश्य अपनी ऊर्जा प्रदान करेगी।
हमारे सद्कर्म व सकारात्मकता ही सुख और शांति का उद्गम स्थल है। और यही आखरी पत्ते को पहला पत्ता बनाते हैं।

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परिचय :- ज्योति जैन
निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश


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