बबली राठौर
पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.)
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जमाना प्राचीन काल और इस वर्तमान युग में अगर अंतर देखा जाए तो बहुत सुविधाएँ और इंसान को चीजो से…. जैसे जो हाथ से चीजें…बनाई जातीं थीं वर्तमान में ज्यादा तर खत्म हो चुकीं हैं। रानी अपनी सास से कहते-कहते काम कर रहीं थीं।
लेकिन बीच रतनलाल…. रानी की बातें सुन कर कहने लगे….. तुम बहुत सही कह रही हो और कड़वी बात भी कह रही हो। जो हाथ की कलाकारी करते थे… दिखाते थे वो ही घाटे में जा रहे हैं क्योंकि कारीगर कम हैं तथा कीमत समान, साड़ियों, चित्रकला की जरूरत से ज्यादा है। आम आदमी खरीदे कैसे मन मार कर रह जाते हैं क्योंकि घर चलाना होता है, बच्चों की पढ़ाई के खर्च इत्यादि के कारण पीछे रह जाता है। आजकल हाथ की चीजें सिर्फ अमीरों के शौक हो कर रह गए हैं।
अपने से ही रानी तुम देख लो…. तुम्हें ये सूती साड़ी तैयार करनी है दिन में तुम्हें वक्त नहीं मिलता और रात में ही अब दस बजे के बाद तुम नाईट लैम्प जला कर तैयार करोगी…….. दिन भर लाईट की कटौती भी होती है।
“सुनती जा रही है रतनलाल की बातें”।
फिर धीरे से बोलीं, जी आप सही कह रहे हैं, अगर मैं इतनी मेहनत ना करूँ तो अपना घर कैसे चलेगा….. कितने खर्चे हैं।
आपकी तनखा तो पूरी ही नहीं पढ़ती…… इतने घर के खर्चे हैं कि पता ही नहीं चलता है……. तनखा कहाँ खर्च हो गई।
गाँव का ये पिछड़ा इलाका है …….करें तो क्या करें…. जो हुनर है उसी पर विश्वास है कि कुछ आप का हाथ तथा कंधो का बोझ हल्का कर पाऊँगी…. अंधे की लकड़ी समझ। “आँख में चुभे ना मेरी बात ये बस”।
रतनलाल ने एक टक रानी की तरफ देखा और कहने लगे मुस्कुराते हुए…. तुम्हीं हो आकाश से बातों की सोचती हो। मुझे नाराजगी नहीं होती गर्व होता है…. लेकिन जब तुम्हें कोल्हू का बैल बनते देखता हूँ तो बस तड़प जाता हूँ।
रानी ने धीरे से रतनलाल के कंधे पर हाथ रखा और बोलीं, “तुम्हारे काम में काम आना मुझे अच्छा लगता है और ये काम गृहणी के हैं तथा घर की औरत को ही सोचना चाहिए ना”।
आँखें अब नम थीं रतनलाल और रानी एक दूसरे को एक तक देखने लगे।
यह सब देख और सुन रहीं थीं सास और धीरे से बड़े ही कोमल मन से रतनलाल को तथा रानी से इक बात कही……… ये तो जिंदगी है…… गृहस्थ आश्रम जीवन का कहीं दर्द, गम और जख्म मिलते है तनाव के।
“कभी कफूर होना चाहिए…… खाक छानना नहीं…. ये मेरा आशीर्वाद है।”
परिचय :- बबली राठौर
निवासी – पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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