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रात

गोरधन भटनागर
खारडा जिला-पाली (राजस्थान)

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रात तुम हर रोज काली हो जाती है!
पूरी बस्ती मानो खाली हो जाती है।
तू भी सोया कर दिन में,
हर रोज अंधेरा कर देती हो।
तुम रोज काली हो जाती हो।।

कुछ हद तक अच्छी भी हो तुम।
चैन से सब को सुलाती हो।।
मगर कुछ को रुलाती हो,
कुछ के सपनो में डाल देती हो जान।
किसी की बन जाती हो शान।।
तुम रोज काली…..

तूम काली ही सही, भोली हो मगर,
सब का तनाव मिटाती हो।
दिन को हरा कर रात हो जाती हो।।
लकिन तुमे नही पता-सो जायंगे
वे लोग जिनके होते है आशियने।
मगर कहा भटकेंगे तेरे अंधेरे,
वह लोग जिनके नसीब घर ही नही।।
तुम रोज काली…..

खेर! तुजे क्या दोष दू में,
मेरा साथ निभाती हो
सब को शांत कराती हो।
और मुझे रात भर जगाती हो
साथ बैठ पढ़ाती हो।
तू काली ही सही मगर
मुझे लायक बना दिया ।।
फिर भी तुम रोज काली…..

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लेखक परिचय :-
नाम : गोरधन भटनागर
निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान)
जन्म तारीख : १५/०९/१९९७
पिता : खेतारामजी
माता : सीता देवी
स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर


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