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नई कली

ज्योति जैन ‘ज्योति’
कोलाघाट (पं. बंगाल)
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नई कली पल्लवित हुई हैं
उन्हें नया परवाज मिले
सीख रही हैं उड़ना अब तो
सप्त सुरों का साज मिले

आँखों में विश्वास भरा है
चाहत को पतवार किया
धरती अंबर नाप लिया जब
मन में ज्योति विचार किया
निज सामर्थ्य के बूते ही
अरमानों का ताज मिले

सीख रही हैं उड़ना अब तो
सप्त सुरों का साज़ मिले

गहरे सागर सी चाहत है
मोती से जज़्बात भरे
छलक रहीं इच्छाएँ लेकिन
अवरोधों से गात भरे
जोड़े कतरन जब चाहत के
जख्मों के समराज मिले

सीख रहीं हैं उड़ना अब तो
सप्त सुरों का साज मिले

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
फहराया अपना परचम
जल थल नभ पर दिखा दिया है
बेटी ने अपना दमखम
बनी देश की शान बेटियांँ
उनको सुंदर आज मिले

सीख रहीं हैं उड़ना अब तो
सप्त सुरों के साज़ मिले

एक दिवस करके सम्मानित
महिला दिवस मनाते हैं
रोज कोख में मारे बेटी
बहुओं को घिघियाते हैं
रोज करें ये ता ता थैया
तन पे इतना खाज मिले

सीख रहीं हैं उड़ना अब तो
सप्त सुरों के साज मिले

परिचय :- ज्योति जैन ‘ज्योति’
निवासी : कोलाघाट (पं. बंगाल)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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