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सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.
“दिन ऐसे भी आयेंगें,
ये कभी सोचा न था,
झूठी शिकायत पर जेल जायेंगें,
ये भी कभी सोचा न था,
अब निवाले भी छीने जायेंगे,
सपने में भी ये सोचा न था,
नोकरी से खदेड़े जायेंगें,
ऐसा भी सोचा न था,
नोकरी मिल भी गई तो,
पदोन्नति में रोके जायेंगें,
गजब, ऐसा कभी सोचा न था,
प्रारब्ध में क्या लिखा, नहीं पता,
ऐसे अच्छे दिनों को देखेंगें,
भूलकर भी कभी सोचा न था,
गंगा जमुनी तहज़ीब केे देेेश मेँ,
जात पांत में ऐसे जकड़ जायेंगें,
ये तो कभी भी सोचा न था”
लेखक परिचय :-
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी
निवासी :- भोपाल म.प्र.
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