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नहीं मिलती हैं कभी

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रचयिता : मीनाकुमारी शुक्ला – मीनू “रागिनी”

काफिया – ए (स्वर)

तपती हुई  राहों को  छाँवें नहीं मिलती  हैं कभी।
उजड़ी हुई जिन्दगी को राहें नहीं मिलती हैं कभी।।

सोचा था  बनायेंगे  गुलिस्ताँ  से  अपना  आशीयाँ।
लेकिन वीरानों को चमन बहारें नहीं मिलती है कभी।

हमसफर होगा हमराज हमख़याल हमनव़ाज भी।
पता न था इश्क में वफायें नहीं मिलती हैं कभी।।

मझधार में जब किस्ती किनारों की हो तलाश।
तूफानों  में  वो पतवारें  नहीं मिलती  है कभी।।

जंजीरों में जकड़ी हुई है जिन्दगी कुछ इस कदर।
मन पंछी  को नयी  उड़ाने नहीं मिलती हैं कभी।।

लेखक परिचय :-  नाम – मीनाकुमारी शुक्ला
साहित्यिक उपनाम – मीनू “रागिनी “
निवास – राजकोट गुजरात 


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