वीणा वैष्णव
कांकरोली
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कर अभिमान, पतन को पाते।
स्वयं हाथ, विनाश न्योता देते।।
समझाने से वो, समझ न पाते।
ठोकर लगे, सत्य पथ अपनाते।।
अभिमनी यश, कभी न पाते।
मन ही मन, मियां मिट्ठू बनते।।
अनीति पैसे कमा, जश्न मनाते।
बच्चों के जहन, गलत बीज बोते।।
एकांकी जीवन, सदा वह जीते।
दर-दर ठोकर, जग में रह खाते।।
दुर्योधन गलत कार्य, जो दोहराते।
अपनों को भी, गर्त वो ले जाते।।
साथ नहीं जब, कुछ भी ले जाते।
फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।।
इतिहास साक्षी, दंभी प्रलय मचाते।
मनुष्य जन्म, फिर कभी न पाते।।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।
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